श्री अखंड परशुराम अखाड़ा ने दीपदान कर मनायी रानी लक्ष्मीबाई की जयंती…

हरिद्वार / सुमित यशकल्याण।

हरिद्वार। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की जयंती पर श्री अखंड परशुराम अखाड़े के अध्यक्ष पंडित अधीर कौशिक के संयोजन में अखाड़े के पदाधिकारियों व विद्यार्थियों ने अग्रसेन घाट पर गंगा में दीपदान किया। इस अवसर पर श्री अखंड परशुराम अखाड़े के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित अधीर कौशिक ने बताया कि रानी लक्ष्मीबाई प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की महान सेनापति थी। बहादुर रानी लक्ष्मी बाई ने बचपन में ही घुड़सवारी, तलवार और बंदूक चलाना सीख लिया था। उनके पहले पुत्र का 04 माह की आयु में देहांत होने पर रानी लक्ष्मी बाई ने एक पुत्र गोद लिया। उन्होंने उस दत्तक पुत्र का नाम दामोदर राव रखा। परंतु अंग्रेजों को यह अच्छा नहीं लगा कि रानी लक्ष्मीबाई का दत्तक पुत्र दामोदर राव उनके सिंहासन का कानूनी वारिस बने। क्योंकि झांसी पर अंग्रेज स्वयं शासन करना चाहते थे। इसलिए अंग्रेजों ने कहा कि झांसी पर रानी लक्ष्मीबाई का अधिकार खत्म हो जाएगा। क्योंकि उनके पति महाराजा गंगाधर का कोई उत्तराधिकारी नहीं है और फिर अंग्रेजों ने झांसी को अपने राज्य में मिलाने की घोषणा कर दी। इसी बात पर अंग्रेजों और झांसी वासियों के बीच युद्ध छिड़ गया।

इसी बीच 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम शुरू हो गया। रानी लक्ष्मी बाई युद्ध विद्या में पारंगत थी। वह पूरे शहर को स्वयं देख रही थी। रानी ने पुरुषों का लिबास पहना हुआ था। बच्चा उनकी पीठ पर बंधा हुआ था। रानी ने घोड़े की लगाम मूंह से पकड़ी हुई थी और उनके दोनों हाथों में तलवारें थी। उन्होंने अंग्रेजों के समक्ष आत्मसमर्पण नहीं किया और अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया। अन्य राजाओं ने उनका साथ नहीं दिया। इस कारण वे हार गई और उन्होंने झांसी पर अंग्रेजो का कब्जा हो जाने दिया। इसके बाद कालपी जाकर उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा। नाना साहब और तात्या टोपे के साथ मिलकर रानी ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए। महारानी लक्ष्मीबाई घुड़सवार की पोशाक में लड़ते-लड़ते 17 जून 1858 को शहीद हो गई। यदि जीवाजी राव सिंधिया ने रानी लक्ष्मीबाई से छल न किया होता तो भारत सौ वर्ष पहले अट्ठारह सौ सत्तावन में ही अंग्रेजों के आधिपत्य से स्वतंत्र हो गया होता। प्रत्येक भारतीय को उनकी वीरता सदैव स्मरण रहेगी। बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झांसी वाली रानी थी।

इस अवसर पर भगवताचार्य पवनकुष्ण शास्त्री, मनोज धीमान, विष्णु पंडित, राजीव बिष्ट, अध्यन शर्मा, अर्णव शर्मा, आचार्य विष्णु पंडित, श्रद्धा शर्मा, मनीषा सूरी, समाजसेवी डॉ. विशाल गर्ग, सुषमा चैहान, मिनी पुरी, कमला जोशी, विनोद मिश्रा, सुनील प्रजापति मौजूद रहे।

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