मातृ सदन में चल रहे तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन का समापन…

हरिद्वार। गंगा, हिमालय और उत्तराखंड बचाने को लेकर मातृ सदन में चल रहे तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन का मंगलवार को समापन हो गया। जिसमें उत्तराखंड में हिमालय, गंगाजी और जोशीमठ के रक्षार्थ वृहद् पक्षों पर विचार मंथन किया गया। कार्यक्रम में भारतीय किसान यूनियन अंबावत गुट के राष्ट्रीय अध्यक्ष ऋषिपाल अंबावत, पूर्व सांसद अवतार सिंह भड़ाना, जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के शिष्य प्रतिनिधि ब्रह्मचारी मुकुंनंद, जल पुरुष राजेंद्र सिंह, समाजसेवी सुशीला भंडारी सहित अन्य लोगों ने अपने विचार व्यक्त किए।
गौरतलब है कि मातृ सदन आश्रम में दिनांक 12 फरवरी से 14 फरवरी तक तीन दिवसीय ‘विश्व पर्यावरण सम्मेलन’ का आयोजन किया गया, जिसमें उत्तराखंड में हिमालय, गंगाजी और जोशीमठ के रक्षार्थ वृहद् पक्षों पर विचार मंथन किया गया।

इस मौके पर स्वामी शिवानंद ने कहा कि मुख्यतः ‘विश्व पर्यावरण सम्मलेन’ का उद्देश्य यह तय करना है कि हमें विकास के नाम पर विनाश चाहिए या फिर हमें हमारे पहाड़, नदी व जंगल को उसी रूप में बचाना हैं जैसा हमें वह प्राप्त हुए हैं। जोशीमठ की घटना कोई प्राकृतिक आपदा नहीं है, इसमें कोई दो मत नहीं है कि जोशीमठ आपदा का मुख्य कारण एनटीपीसी द्वारा वहाँ करवाया जा रहा टनल निर्माण है। जिसकी खुदाई के दौरान पहाड़ के भीतर मौजूद जलभृत (Aquifer) फट गया, जिसके बहाव में पहाड़ के भीतर का मलवा पानी के साथ बहा और परिणामस्वरूप ऊपर की भूमि धसने लगी। यह तथ्य है। स्वामी शिवानंद ने कहा कि सरकार अनेक समिति बनाकर सत्य को छुपाने की कोशिश करे, लेकिन आम जनमानस यह सत्य जानता है। इसी प्रकार अन्य परियोजनाएं, जैसे चारधाम कॉरिडोर का निर्माण, जिसके लिए हज़ारों देव-तुल्य देवदार के वृक्ष निर्ममता से काटे गए और आगे भी काटे जायेंगे, क्या ऐसी परियोजनाओं के लिए बिना विस्तृत प्रभाव-आंकलन किये इन्हें स्वकृति देना उचित है? गंगाजी में खनन के लिए सरकारी संस्थानों द्वारा झूठी रिपोर्ट तैयार की जाती है। यह वैज्ञानिक तथ्य है कि गंगाजी में एक भी पत्थर ऊपर से बहकर नीचे हरिद्वार में नहीं आता है लेकिन हर साल लाखों टन पत्थर की खुदाई के लिए टेंडर बाटें जातें हैं जिससे सैंकड़ों स्टोन क्रेशर माफिया और इनके साथ कई राजनेता व सरकारी अधिकारी पोषित होते हैं। यह वस्तुस्थिति है और गंभीर प्रश्न यह है कि आखिर कब तक जनमानस इस भ्रष्टाचार को विकराल रूप लेता हुआ देखता रहेगा? इन पहलुओं पर चर्चा हेतु ‘विश्व पर्यावरण सम्मलेन’ में देश-विदेश से संत, वैज्ञानिक, किसान, विद्यार्थी, आम नागरिक व राजनेता सम्मिलित हुए। स्वामी शिवानंद ने कहा कि सम्मलेन में पारित किये गए प्रस्तावों को इस प्रस्तावना संकल्प में संकलित किया गया है जिसका उद्देश्य है कि सरकार इन पहलुओं पर गहनता से विचार के उपरांत इन्हें नीति निर्माण में शामिल करें। इस सम्मलेन में पारित संकल्प समाज के विविध वर्गों का मत है जो विकास के नाम पर विध्वंसक विनाश नहीं, अपितु प्राकृतिक सम्पदा का उसके मूल रूप में संरक्षण चाहता है।

इस मौके पर जल पुरूष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि उनके द्वारा एक गांव से शुरू जल संरक्षण की परियोजना आज तेरह सौ गांवों तक पहुंच गई है। हजारों लाखों लोग इसका लाभ ले रहे हैं। इसी प्रकार सरकार को जनहित में विकास के कार्य करने चाहिए। ऐसा विकास कार्य जिससे जन हानि हो उस पर अविलंब रोक लगानी चाहिए। उन्होंने कहा कि मातृ सदन की लिखित मांगों को सरकार मान ले तो गंगा स्वत ही पवित्र हो जाएगी। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज के प्रतिनिधि ब्रह्मचारी मुकुन्दानंद ने कहा कि पहाड़ों और जंगलों से हमें क्या चाहिए यह प्राथमिकता अभी तय करनी चाहिए। हिमालय के महत्व को भी तय करना होगा।‌ उत्तराखंड राज्य सरकारों के विकास की भेंट चढ़ा रहा है। हिमालय पर्वत, जंगल और वन नष्ट होते जा रहे हैं। जनजीवन अस्त-व्यस्त होता जा रहा है। प्रदेश सरकार को स्थानीय लोगों के हित का भी ध्यान रखना चाहिए। इस समय वें जोशीमठ से विस्थापित लोगों की जरूरतों को पूरा करने में व्यस्त हैं। समाजसेवी सुशीला भंडारी ने कहा कि जोशीमठ में अभी भी सुरंग का काम बंद नहीं हुआ है। लोकल लोगों से काम नहीं कराकर बिहारियों और नेपाली मजदूरों से काम कराया जा रहा और ऐसे मजदूरों का रिकॉर्ड मेंटेन नहीं किया जा रहा है। खुलेआम हाईकोर्ट के आदेश का उल्लंघन किया जा रहा है।

भाजपा नेता संजीव चौधरी ने कहा कि भाषणों से गंगा स्वच्छ और अविरल नहीं होगी। इसके लिए धरातल पर उतर कर काम करना होगा। मातृ सदन के संत लगातार गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए कार्य कर रहे हैं। ऐसे में जनमानस को उनका साथ देना चाहिए।
कार्यक्रम के दौरान भारतीय किसान यूनियन अंबावत गुट के ऋषिपाल अंबावता ने अपने साथियों के साथ मातृ सदन के आंदोलन को अपना समर्थन दिया। वहीं पूर्व सांसद अवतार सिंह भड़ाना भी अपने साथियों के सम्मेलन में शामिल होकर मात्र सदन की मांगों पर सरकार से कार्रवाई की मांग की।

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