फूलों से कैसे करें रोगों का इलाज, जानिए दीपक वैद्य द्वारा बताए गए उपाय

🍃 Arogya🍃
हरिद्वार। कनखल के प्रसिद्ध वेद दीपक कुमार आज स्वास्थ्य लाभ में आपको बता रहे हैं की फूलों से रोगों का इलाज कैसे किया जाता है जानिए,
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पुष्प अपने आराध्य को अर्पित करके, उनके प्रति समर्पण का भाव दर्शाता है। आज इनका उपयोग प्रत्येक अवसर पर होता है। जन्मदिन से लेकर अंत्येष्टि संस्कार तक इनके बिना अधूरे रहते हैं। भावुक और रसिक दोनों के हृदय में आनंद उत्पन्न करने में समर्थ, कामिनी और विरही दोनों के हृदय को अपनी ओर अनुरक्त करते हैं। फूलों के रस से विशेष लेप तैयार किया जा सकता है, जिसको बाह्य रूप से त्वचा पर लगाने से, उसकी सुगंध हृदय तथा नाक तक प्रभाव दिखाकर मन को प्रफुल्लित करती है। सबसे अच्छी बात यह है कि इससे अन्य दुष्प्रभाव नहीं पड़ते।

पुष्पों के औषधीय प्रयोग
पुष्प शीत-गरमी-वर्षा पूरे वर्ष रंग-बिरंगे, परस्पर प्रतिस्पर्धा करते हुए, विभिन्न आकार-प्रकार में दृष्टिगोचर होते हैं। फूलों को शरीर पर धारण करने से शोभा, कांति, सौंदर्य और श्री की वृद्धि होती है। इनको प्राचीनकाल से रानी-महारानी अपनी त्वचा को कोमल बनाने में तथा शृंगार में उपयोग करती रही हैं। जंगली आदिवासी आभूषण बनाने तथा केश सज्जा में करते हैं। फूलों की सुगंध रोग नाशक भी है। इनके सुगंधित परमाणु वातावरण में घुलकर नासिका की झिल्ली में पहुँचकर अपनी सुगंध का एहसास कराते हैं, जिससे मस्तिष्क के अलग-अलग हिस्सों पर प्रभाव दिखाकर उत्तेजना-सी अनुभव कराते हैं। जिनका मस्तिष्क, हृदय, आँख, कान, पाचन क्रिया, रति क्रिया पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। थकान को तुरंत दूर करते हैं। इसकी सुगंध से की गयी उपचार-प्रणाली को ‘ऐरोमा थैरेपी’ कहते हैं। पुष्पों के कुछ औषधीय प्रयोग निम्न हैं-

केसर
दही माथे माखन मिले केसर जरा मिलाए
होठों पर लेपित करें रंग गुलाबी आए
मन को प्रसन्न करता है। चेहरे को कांतिवान बनाता है। रज दोषों का नाशक, शक्तिवर्द्धक, वमन को रोककर वात, पित्त, कफ (त्रिदोषों का) नाशक है। तंत्रिकाओं में व्याप्त उद्विगन्ता एवं तनाव को केसर शांत रखता है, इसलिए इसे प्रकृति प्रदत्त ‘ट्रैंकुलाइजर’ भी कहा जाता है। यह काम तथा रति में उद्दीपन का कार्य करता है, अतः दूध या पान के साथ सेवन योग्य है।

गुलाब
भुनी फिटकरी लीजिए जल गुलाब में घोल
जलन और जाली मिट सतगुरु के यह बोल
आशिक मिजाजी, प्रेम का प्रतीक गुलाब है। इसका गुलकंद रेचक है, जो पेट व आँतों की गरमी शांत कर हृदय को प्रसन्नता प्रदान करता है। गुलाब जल से आँखें धोने से आँखों की लाली, सूजन कम होती है। इसका इत्र कामोत्तेजक है। इसका तेल मस्तिष्क को ठंडा रखता है। गुलाब का अर्क मिठाइयों में प्रयोग किया जाता है। गर्मी में इसका प्रयोग शीतवर्द्धक है।

चंपा
पागलपन उन्माद की औषधि है अनुकूल
शहद मिलाकर चाटिए ले चंपा के फूल
इसके फूलों को पीसकर कुष्ठ रोग के घाव में लगाया जा सकता है। इसका अर्क रक्त के कृमि को नष्ट करता है। फूलों को सुखाकर चूर्ण खुजली में उपयोगी है। ज्वरहर, मूत्रल, नेत्र ज्योति वर्द्धक तथा पुरुषों को रतिदायक उत्तेजना प्रदान करता है। कहावत है ‘चंपा एक चमेली सौ’ अर्थात सौ चमेली पुष्पों के बराबर एक चंपा पुष्प होता है।

बबूल (कीकर)
तजीफली बाबुल की लीजिए दूध निकाल
नित्य आंख में आंजिए नष्ट हुए पदवाल
फूलों को पीसकर सिर में लगाने से सिरदर्द गायब हो जाता है। इसका लेप दाद और एग्जिमा पर लगाने से चर्म रोग दूर होता है। इसके अर्क के सेवन से रक्त विकार दूर होते हैं। यह खाँसी और श्वास रोग में लाभकारी है। इसके कुल्ले दंतक्षय को रोकते हैं।

नीम
कान शूल और पीब में नीम तेल टपकाए
रोज रात को डालिए बेहरापन मिट जाए
फूलों को पीसकर लुग्दी बनाकर फोड़े-फुंसी पर रखने से जलन व गर्मी दूर होती है। इनको शरीर पर मलकर स्नान करने से दाद दूर हो जाता है। फूलों को पीसकर पानी में घोलकर छान दें। इसमें शहद मिलाकर पीयें, तो वजन कम होता है तथा रक्त साफ होता है। यह संक्रामक रोगों से रक्षा कारक है।

सौंफ (शतपुष्पा)
भोजन करके खाईये सौंफ गुड अजवाइन
पत्थर भी पच जाएगा जाने सकल जहान
सौंफ के पुष्पों को पानी में डालकर उबालें, साथ में एक बड़ी इलायची तथा कुछ पोदीना के पत्ते भी लें। अच्छा यह रहेगा कि मिट्टी के बर्तन में उबालें। पानी को ठंडा करके दाँत निकलने वाले बच्चे या छोटे बच्चे जो गर्मी से पीड़ित हों, एक-एक चम्मच कई बार दें, तो उनको पेट में पीड़ा इत्यादि शांत होगी तथा दाँत भी ठीक प्रकार निकलेंगे।

आक
दूध आक का लीजिए तलवों माही रामाय
दिन चालीस लगाइए मिर्गी रोग नशाय
इसका फूल कफ नाशक है। प्रदाह कारक भी है। यदि पीलिया में पान में रखकर एक या दो कली तीन दिन तक दी जाए, तो काफी हद तक आराम होगा।

कमल
मिश्री करकटबीज़ गिर, श्वेत कमल प्रख्यात
श्वेत जीरक जल सह भीषगो से आख्यात
कमल और लक्ष्मी का संबंध अविभाज्य है। कमल सृष्टि की वृद्धि का द्योतक है। इसके पराग से मधुमक्खी शहद तो बनाती ही है, इसके फूलों के गुलकंद का प्रत्येक प्रकार के रोगों में, कब्ज निवारण के लिए उपयोग किया जाता है। फूल के अदंर हरे रंग के दाने-से निकलते हैं जिन्हें भूनकर मखाने बनाये जाते हैं, लेकिन उनको कच्चा छीलकर खाना स्तंभन में उपनयोगी होता है। इसका गुण शीत वीर्य है। इसका प्रयोग सबसे अधिक अंजन की भांति नेत्रों में ज्योति बढ़ाने के लिए, शहद में मिलाकर किया जाता है। इसी कारण आँख को ‘कमल नयन’ भी कहते हैं। पंखुड़ियों को पीसकर उबटन में मिलाकर मलने से चेहरे की सुंदरता बढ़ती है।

केवड़ा
इसकी गंध कस्तूरी-जैसी मादक होती है। इसके पुष्प दुर्गन्धनाशक मदनोन्मादक हैं। इसका तेल उत्तेजक श्वास विकार में लाभकारी है। सिरदर्द और गठिया में इसका इत्र उपयोगी है। इसकी मंजरी का उपयोग पानी में उबालकर कुष्ठ, चेचक, खुजली, हृदय रोगों में स्नान करके किया जा सकता है। इसका अर्क पानी में डालकर पीने से सिरदर्द तथा थकान दूर होती है। बुखार में एक बूँद देने से पसीना बाहर आता है। इत्र की दो बूँद कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है।

धतूरा
स्वांसनतक वटी है लाभकर जब वृद्धिगत श्वास
कनकासव से सर्वदा होता श्वास का नाश
यह मादक तथा विषैला पौधा है, जिनको उन्माद रोग के कारण अनिद्रा रोग हो, उन्हें फूलों को एकत्रित करके बारीक कपड़े में बाँधकर सिरहाने रखने से निद्रा आना शुरू हो जाती है।

गैंदा
गेंदा पल्लव कर्ष एक भेषजांग हिम-पीथ
शहद मिश्रित हैम-शत फल हो आशातीत
मलेरिया के मच्छरों का प्रकोप सारे देश में है, लेकिन इनकी खेती यदि गंदे नालों और घर के आसपास की जाए, तो इसकी गंध से मच्छर दूर भागते हैं। यह जंगली फूलों वाला पौधा है, जो आसानी से एक बार बोने पर लग जाता है। लीवर की सूजन, पथरी-नाशक, चर्मरोगों में इसका प्रयोग किया जा सकता है।

बेला
अत्यधिक सुगंध का गर्मी में अधिकता से फूलने वाला पौधा है, लेकिन आजकल घरों में इसे कम लगाते हैं। गर्मी में इसके हार या पुष्पों को अपने पास रखने से पसीने में गंध नहीं आती है। महिलाएँ इसको केश-सज्जा में बहुत प्रयोग करती हैं। इसकी सुगंध प्रदाह नाशक है। स्त्रियों के गर्भाशय में उत्तेजना को प्रदान करने वाला एकमात्र पुष्प है, रतिदायक है। इसकी कलियाँ चबाने से मासिक खुलकर आता है।

रात की रानी
इसकी गंध इतनी तीव्र होती है कि पड़ोसियों तक को लुभायमान कर देती है। यह सायं 7 से 11 बजे रात्रि तक खुशबू अधिक देता है। इसके बाद सुप्त हो जाता है। इसकी गंध में मच्छर नहीं आते। इसकी गंध मादकता और निद्रादायक है।

सूरजमुखी
विटामिन ए/डी होता है। सूर्य की रोशनी न मिलने के कारण होने वाले रोगों को रोकता है। इसकी खेती व्यापारिक स्तर पर लाभकर है। इसका तेल हृदय रोगों में कोलेस्ट्रोल को कम करता है।

चमेली
भीम दहा कर आद्री में, मले मालती तेल
कहा भीष्ग ने लाभ कर, कुछ जल का हो मेल
चर्म रोगों की औषधि, पायरिया, दंतशूल, घाव, नेत्ररोगों और फोड़ों-फुंसियों में इसका तेल बनाकर उपयोग किया जाता है। इसका तेल बाजीकरण में मालिश के योग्य है। शरीर में रक्त संचार की मात्रा बढ़ाकर स्फूर्तिदायक बन जाता है। इसके पत्ते चबाने से मुँह के छाले तुरंत दूर होते हैं। इसकी माला रति इच्छा बढ़ाने में सहायक है।

अशोक
अशोक छाल सह सर्वदा, रसौत हो संयुक्त
अल्प विश्वमित्र अल्प शहद से,प्रदर रोग हो मुक्त
यह मदन वृक्ष भी कहलाता है। इसके फूल, छाल, पत्तियों का स्त्रियों की औषधि में उपयोग किया जा सकता है। अशोक का अर्थ है जिसको पाकर शोक न रहे। छाल का आसव बनाकर पीने से स्त्रियों की अधिकांश बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं।

ढाक (पलाश)
ढाक के पुष्प का है, अति उत्तम क्वाथ
रूधीर बंद होता त्वरित अल्प शहद के साथ
इसको अप्रतिम सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि इसके गुच्छेदार फूल बहुत दूर से ही आकर्षित करते हैं। इसी आकर्षण के कारण वन की ज्योति भी कहते हैं। इसका चूर्ण पेट के किसी भी प्रकार के कृमि का हनन करने में सहायक है। इसके पुष्पों को पानी के साथ पीसकर लुगदी बनाकर पेडू पर रखने से पथरी के कारण दर्द होने या मूत्र न उतरने पर मूत्रल का कार्य करता है।

गुड़हल (जवा)
गणेश एवं काली देवी का प्रिय है। इसका पूर्ण संबंध गर्भाशय से है। ऋतु काल के बाद यदि फूल को घी में भूनकर महिलाएँ सेवन करें, तो उन्हें ‘गर्भ-निरोध’ हो सकता है। मुँह के छाले दूर हो जाते हैं। इसके फूलों को पीसकर बालों में लेप लगाने से बालों का गंजापन मिटता है। यह उन्माद को दूर करने वाला एकमात्र पुष्प है। शीतवर्द्धक, वाजीकारक, रक्तशोधक, सूजाक रोग में गुलकंद या शरबत बनाकर दिया जा सकता है। शरबत हृदय को फूल की भाँति प्रफुल्लित करने वाला रुचिकर है।

शंखपुष्पी (विष्णुकांत)
शंखपुष्पी ऐक कर्ष में मिश्री हो द्वय कर्ष
शीत सलिल सह सर्वदा नष्ट दाह रोग दुरुदूरर्स
गर्मियों में इसकी उत्पत्ति अधिक होती है। यह घास की तरह है। फूल-पत्ते तथा डंठल तीनों को उखाड़कर पीसकर पानी में मिलाकर छान लें, इसमें शहद या मिश्री मिलाकर पीने से शाम तक मस्तिष्क में ताजगी रहती है। कार्यालयों में बैठकर काम करने पर सुस्ती नहीं आएगी इसका सेवन विद्यार्थियों को अवश्य करना चाहिए।

लौंग
लौंग तेल से सम्मिलित रति चार अफीम
प्रोक्षण लेप मस्तिष्क पर मिलता लाभ असीम
आमाशय और आँतों में रहने वाले उन सूक्ष्म कीटाणुओं को नष्ट करते हैं जिसके कारण मनुष्य का पेट फूलता है। रक्त के श्वेत कणों में वृद्धि करके शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति की वृद्धि करते हैं, शरीर तथा मुँह की दुर्गंध का नाश करती हैं। शरीर के किसी भी हिस्से पर घिसकर लगाने से दर्दनाशक का काम करते हैं। दाढ़ या दंतशूल में मुख में डालकर चूसा जाता है। यज्ञ द्वारा इसका प्रयोग करने से शरीर में अनावश्यक जमा तत्वों को पसीने द्वारा बाहर निकाल देते हैं।

जूही
फूलों का चूर्ण या गुलकंद अम्लपित्त को नष्ट कर पेट के अल्सर व छाले को दूर करता है। इसके निरंतर सानिध्य में रहने से क्षय रोग नहीं होता।

माधवी
चर्म रोगों के निवारण के लिए इसके चूर्ण का लेप किया जाता है। गठिया रोग में प्रातःकाल फूलों को चबाने से आराम मिलता है। इसके फूल श्वास रोग भी हरते हैं।

कुसुम
भस्म कुसुम के फूलों की, करे रुधिर अवरोध
जल सह सेवन उचित यह वैद्यों की शोध
इस फूल की कलियाँ मासिक धर्म के बाद खाने से गर्भ निरोध होते देखा गया है।

हरसिंगार (पारिजात)
गठिया रोगों का नाशक, इसका लेप चेहरे की कांति को बढ़ाता है। इसकी सुगंध ही रात्रि को मादकता प्रदान करती है। मलेरिया एवं सायटिका में 5 से 10 पत्ते पानी में उबालकर पीने से बहुत लाभ मिलता है

कदंब
पार्वती एवं कृष्ण प्रिय वृक्ष है। रसिक लोगों का मदन वृक्ष यही कहलाता है। कदंब वृक्ष पुराण वृक्ष है। इसको कल्प वृक्ष की संज्ञा भी प्राप्त है। यह कामोत्तेजक वृक्ष है। गाय की बीमारी में इसकी फूल-पत्ती वाली टहनी लेकर गौशाला में लगा देने से बीमारी दूर होती है। मदिरा या वारुणी बनाने में इसका प्रयोग है। वर्षा ऋतु में पल्लवित होने वाला गोपी प्रिय वृक्ष है जिसकी वृंदावन में बहुतायत है।

कचनार
कहां वैद्य ने श्रेयकर कांचनार का चूर्ण
तीन बार चूसें अगर नष्ट कास संपूर्ण
इसकी कली शरद ऋतु में आती है तथा इसका उपयोग सब्जी व अचार बनाने हेतु होता है। इसकी कलियाँ बार-बार मल त्याग की प्रवृत्ति को रोकती हैं। छाल एवं फूल को जल के साथ मिलाकर पुलटिस तैयार की जाती है, जो जले घाव एवं फोड़े के उपचार में उपयोगी है।

शिरीष
यह जंगली, तेज सुगंध वाला वृक्ष है। इसकी सुगंध जब तेज हवा के साथ आती है, तो आदमी मस्त-सा हो जाता है। खुजली में फूल पीसकर लगाना चाहिए, शिरीष के फूलों के काढ़े से नेत्र धोने से किसी भी प्रकार के विकारों को लाभ मिलेगा।

नागकेशर
नागकेसर शीतल मिर्च ऐला वंशकपूर
पेठा मुरब्बा कर्श ट्रय रक्त पित्त हो दूर
यह कौंकण और गोवा में होता है। यह खुजली नाशक है। यह लौंग-जैसी लंबी डंठी में लगा रहता है। इसके (फूलों) का चूर्ण बनाकर मक्खन में साथ या दही के साथ खाने से रक्तार्श में लाभ होता है। इसका चूर्ण गर्भ धारण में भी सहायक है।

मौलसिरी (बकुल)
मूलश्री संग शतावरी कीकर फल पुष्प चूर्ण
सम मिश्रित हो मोचरस, दोहज सह फलटूर्न
इसका प्रसिद्ध नाम मौलसिरी है। आदिवासी स्त्रियाँ इसका प्रयोग श्रृंगार में फूलों के आभूषण बनाकर प्रयोग करती हैं। इसके पुष्प तेल में मिलाकर इत्र बनाते हैं। इसके फूलों का चूर्ण बनाकर त्वचा पर लेप करने से त्वचा अधिक कोमल हो जाती है। इसके फूलों का शर्बत स्त्रियों के बाँझपन को दूर कर सकने में समर्थ है।

अमलतास
अमलतास कुटकी हरण सम आमला पहचान
निर्गुंडी सह क्वाथ उचित नष्ट गुढग्रह जान
ग्रीष्म में फूलने वाला गहरे पीले रंग के गुच्छेदार पुष्पों का पेड़ दूर से देखने में ही आँखों को प्रिय लगता है। फूलों का गुलकंद बनाकर खाने से कब्ज दूर होता है। लेकिन अधिक मात्रा में सेवन करने से दस्तावर, जी मिचलाना एवं पेट में ऐंठन उत्पन्न करता है।

अनार
अनार पुष्प अर्धकर्ष में, चीनी तोला एक
प्रल्पित है श्वेत प्रदर से, शीत सलिल अतिनेक
शरीर में पित्ती होने पर, अनार के फूलों का रस मिश्री मिलाकर पीना चाहिए। मुँह के छालों में फूल रखकर चूसना चाहिए। आँख आने पर कली का रस आँख में डालना चाहिए।
इन फूलों के पौधों की भीतरी कोशिकाओं में विशेष प्रकार के प्रदव्यी झिल्लियों के आवरण वाले कण कहलाते हैं इन्हें लवक (प्लास्टिड्स) कहते हैं। यह कण जीवित रहते हैं, जब तक फूलों का रंग समाप्त न हो जाए। यह लवक दो प्रकार के होते हैं। इनमें रंगीन लवकों को ‘वर्णी लवक’ कहते हैं। वर्णी लवक ही फूल पौधों को विभिन्न रंग प्रदान करते हैं। वर्णी लवक का आकार निश्चित नहीं होता, बल्कि लवक विभिन्न पौधों में अलग-अलग रचना वाले होते हैं। पौधों में सबसे महत्वपूर्ण लवक है हरित लवक (क्लोरोप्लास्ट), हरा लवक पौधों में हरा रंग ही नहीं देता, बल्कि पौधों में भोजन का निर्माण भी करता है। हरित लवक कार्बन डाइऑक्साइड, गैस, जल और सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में ग्लूकोस-जैसे कार्बोहाइड्रेट पदार्थ का निर्माण करते हैं।

पुष्पों के देवता कामदेव
पुष्प सूर्य से क्रिया करके अपनी रंगीन किरणें हमारी आँखों तक पहुँचाते हैं, जिससे शरीर को ऋणात्मक, घनात्मक तथा कुछ न्यूट्रल प्रकाश की किरणें मिलती हैं, जो शरीर के अंदर पहुँचकर विभिन्न प्रकार के रोगों को रोकने में सहायता प्रदान करती हैं। इस प्रकार हम ‘कलर थैरेपी’ द्वारा-चिकित्सा के लाभ ले सकते हैं। फूलों का चिकित्सा में महत्व के अलावा काफी हद तक उपासना में प्रयोग होता है। अलग-अलग देवताओं के अलग-अलग पुष्प हैं क्योंकि पुष्पों की प्रकृति के अनुसार अलग-अलग देव वर्ग में बाँटा गया है। उदाहरणार्थ शिव पर केतकी व चंपा, दुर्गा पर आक पुष्प, तगर का पुष्प सूर्य को, धतूरा, नीम, गुड़हल, कचनार, आक पुष्प विष्णु को नहीं चढ़ाये जाते। इस प्रकार तांत्रिक ग्रंथों में देवता और पुष्पों की एक लंबी सूची है। पुष्पों के प्रमुख देवता कामदेव हैं। उपासना के लिए प्रत्येक माह के अलग-अलग पुष्प हैं। दोपहर को स्नान के बाद पुष्प नहीं तोड़े जाते। पुष्पों को तोड़कर मिट्टी के बर्तन में कदापि न रखें, क्योंकि गंध को पृथ्वी तत्व तुरंत ग्रहण कर लेती है। फूलों की चमक या तेल तत्व को धातु (अग्नि तत्व) ग्रहण कर लेती है। प्लास्टिक या बाँस की टोकरी ज्यादा उपयोगी है।
पुष्प धोकर भी नहीं चढ़ाये जाते हैं। ‘सिद्धांत निर्णय सिंधु’ में कहा गया है कि किसी देवता की उपासना में उसके नाम के प्रथम अक्षर से मिलते जुलते पुष्प तथा औषधि का प्रयोग मंत्र तथा देवता की सिद्धि के लिए करना चाहिए। फूलों को पीसकर लेप व गंध बनाकर देवता तथा स्वयं को भी लगाया जाता है। पुष्पों का सार मधु होता है, मधु विद्या से संबंधित उपनिषद बृहदारण्यक है। पुष्पों के पराग को केसर कहते हैं। केसर पुष्पों का सबसे अधिक मदकारक है जो भौरों को अत्यंत प्रिय होता है
Dr. (Vaid) Deepak Kumar
Adarsh Ayurvedic Pharmacy
Kankhal Hardwar [email protected]
9897902760

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