स्वामी मुक्तानंद हुए पंचतत्व में विलीन, अंतिम संस्कार में उमड़ा जनसैलाब, देखें वीडियो…
हरिद्वार / सुमित यशकल्याण।
हरिद्वार। योग गुरु बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के परम सखाओं में शामिल स्वामी मुक्तानंद को पूरे सम्मान के साथ शनिवार शाम अंतिम विदाई दे दी गई। अपने सखा को स्वयं योग गुरु बाबा रामदेव एवं आचार्य बालकृष्ण ने नम आंखों से मुखाग्नि दी। इस दौरान आचार्य बालकिशन की आंखों से भी आंसू लगातार टपकते रहे। पतंजलि के गठन से लेकर अब तक आसमान की ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले स्वामी मुक्तानंद को अंतिम विदाई देने संत समाज के साथ पतंजलि से जुड़े सैंकड़ों कार्यकर्ता और आम जनमानस श्मशान घाट पहुंचे।
शुक्रवार रात हृदय गति रुकने से ब्रह्मलीन हुए स्वामी मुक्तानंद योग गुरु बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के कितने करीब थे इस बात का अंदाजा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि संत होने के बावजूद बाबा रामदेव एवं आचार्य बालकृष्ण ने स्वामी मुक्तानंद के तमाम अंतिम संस्कार स्वयं अपने हाथों से किए। कनखल स्थित बाबा रामदेव व आचार्य बालकृष्ण के कृपालु बाग आश्रम से सैकड़ों की संख्या में लोग शव यात्रा में शामिल हुए, कनखल के मुख्य बाजार से होती हुई शव यात्रा कनखल स्थित श्मशान घाट पहुंची जहां पर स्थानीय लोगों के साथ पतंजलि से जुड़े कर्मचारी और हरिद्वार के कई बड़े संत, महंत अपने प्रिय को अंतिम विदाई देने पहुंचे।
योग गुरु बाबा रामदेव एवं आचार्य बालकृष्ण ने स्वयं अपने हाथों से अपने सखा के तमाम अंतिम कर्मकांड संपन्न किए। स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने स्वामी मुक्तानंद की चिता को मुखाग्नि दी। इस दौरान बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण अपनी आंखों से आंसुओं के बहने के सिलसिले को रोक ना पाए।
अपने परम सखा स्वामी मुक्तानंद को मुखाग्नि देने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए भरे कंठ से योग गुरु बाबा रामदेव ने कहा कि एक कर्म योगी महापुरुष, जिन्होंने योग आयुर्वेद, स्वदेशी भारतीयता और ऋषि संस्कृति को जिया वे स्वामी मुक्तानंद थे, हम लोग 1987 से साथ में थे उनका ज़ीना बहुत गौरवपूर्ण रहा, लेकिन उनका जाना हमें एक बड़ी वेदना देकर गया है। पतंजलि योगपीठ परिवार को एक अपूरणीय क्षति तो हुई है, लेकिन हमें वो जो राह दिखा कर गए हैं उन्होंने हमें सदा बड़ा माना और हमने हमेशा उन्हें अपने अग्रज बड़े भाई के रूप में ही माना था, सदा उनके आशीर्वाद के तले ही हम आगे बढ़ते रहे, आज उनको अंतिम विदाई देते हुए अंतर में बहुत विधना है लेकिन उस महापुरुष को विदाई देते हुए भगवान से यही प्रार्थना है कि वह उन्हें अपने श्री चरणों में स्थान दें।