दो दशक में बदले पत्रकारिता के दौर को जानिए वरिष्ठ पत्रकार नरेश गुप्ता के कलम से
आज की पत्रकारिता और पत्रकार बिना वेतन के भागे फिरते हैं अधिकांश पत्रकार
अब पत्रकारिता एक ऐसा पेशा हो गई है ।की जिसके लिए बड़े चैनल भी जिलों में मौजूद अपने स्टिंगरों को वेतन देना नहीं चाहते ।जो कुछ बड़े चैनल जिसमें मात्र तीन-चार चैनल ही हैं वह अगर स्टिंगर को वेतन देते भी हैं ।तो केवल नाम मात्र के लिए। यह वेतन प्रतिमाह 10000 से भी कम होता है ।स्टाफर को फिर भी ठीक सैलरी मिल जाती है।अब पत्रकार जो इलेक्ट्रॉनिक चैनल के लिए काम करता है ।और 24 घन्टे के लिए भाग दौड़ करने के लिए तैयार रहना पड़ता है। तभी वह अपनी नौकरी बचा सकता है ।और यही हो भी रहा है ।आप देखेंगे अब हर शहर कस्बे में इलेक्ट्रॉनिक चैनल और पोर्टल की आईडी बनवाकर लिए फिर रहे पत्रकारों की संख्या में निरंतर इजाफा हो रहा है यह पत्रकार जिनमें से अधिकांश ना तो पत्रकारिता जानते हैं न ही उन्हें पत्रकारिता के बारे में कोई ज्ञान है लेकिन यह आइडिया लिए भागे फिरते हैं। रही बात बड़े चैनलों के पत्रकारों की यह पत्रकार मुश्किल से इन सैकड़ो पत्रकारों की भीड़ में इनकी संख्या आधा दर्जन से ज्यादा नहीं होती है। हालत यह है की प्रिंट मीडिया में काम करने वाले पत्रकारो को उनकी मेहनत के हिसाब से वेतन नही मिलता ।लेकिन पत्रकारिता का चस्का ऐसा चस्का है जो एक बार लग जाए तो छूटता नहीं। अब अगर मैं यह कहूँ कीअब पत्रकारिता के स्थान पर पत्रकारिता ना होकर केवल भांड गिरी हो रही है ।तो यह कहना कोई गलत नहीं होगा।जो सही मायने में कुछ लिखना या दिखाना चाहते है वे मजबूर है। क्योंकि आप शहर की कोई भी नेगेटिव खबर नहीं भेज सकते जब तक ऊपर से हरी झंडी न मिल जाए ।खासकर सरकार के खिलाफ ।जब तक ऊपर से हरी झंडी न मिल जाय।
इसलिए मंत्रियों और अधिकारियों के आगे पीछे ही भाग कर काम चलाया जाता है एक जमाना जब मैने 2002 में ज़ी न्यूज़ ज्वाइन किया था।मै उत्तराखंड बनने के बाद पहला रिपोर्टर था।जिसने इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता में प्रवेश किया था। उस समय अच्छी सैलरी मिलती थी ।और शहर से बाहर जाने पर अच्छा टी ए डी ए और वेतन मिलता था । आप खबर भी चाहे कितना बड़ा आदमी हो उसके खिलाफ चला सकते थे ।ऐसा केवल ज़ी न्यूज़ के लिए ही नहीं था। और भी अन्य चैनल जो आए ।चाहे वह आज तक हो या स्टार न्यूज़ या सहारा समय हो या ई टी वी हो सभी अपने स्टाफ़रो की तो बात छोड़िए स्टिंगरो को भी ठीक-ठाक पैसे दिया करते थे ।लेकिन पढे लिखे और पत्रकारिता का ज्ञान रखने वालों को ही रखा जाता था।इसी लिए स्टिंगरो को भी अपना खर्चा आराम से चलाने के लिया वेतन मिलता था ।लेकिन आज वेतन के नाम पर जैसा मैंने बताया की मुश्किल से आधा दर्जन से भी काम चैनल अपने स्टिंगरो को 10000 से भी कम वेतन देते हैं ।और काम के नाम पर 24 घंटे की नौकरी उनसे लेते हैं।इसी लिए अधिकांश पत्रकारों ने नोकरी छोड़ दी है। नए लड़के आकर काम कर रहे है। मैने स्वास्थ्य खराब होने के कारण2024 में ज़ी न्यूज़ से काम छोड़ा।आज के नए लड़को को वेतन से नही केवल आई डी से मतलब है किसी तरह आई डी मिल जाय ।और नए लड़को की यह कमजोरी बड़े चैनल वालो ने भी भांप ली है । जिसका पूरा फायदा चैनल वाले उठाते हुए।नाम मात्र का वेतन देकर ही काम कराते है।
नरेश गुप्ता , हरिद्वार