मां सुरेश्वरी देवी की महिमा है अपार, कष्ट हरतीं, सुख देतीं अपरंपार -स्वामी संतोषानंद देव।

हरिद्वार। महामंडलेश्वर डॉ. स्वामी संतोषानंद देव महाराज ने कहा कि घने जंगलों के बीच विराजमान मां सुरेश्वरी देवी की महिमा अपरंपार है। इसी स्थान पर देवराज इन्द्र ने कठिन तपस्या कर मां भगवती सुरेश्वरी देवी को प्रसन्न किया था और उनके आशीर्वाद से स्वर्ग का आधिपत्य पुनः प्राप्त किया था। उन्होंने बताया कि मान्यता है कि जहां-जहां भगवती सती के अंग गिरे थे, उस स्थान को शक्ति पीठ और जहां साधना-तपस्या के माध्यम से भगवती अवतरित हुई उस स्थान को सिद्ध पीठ कहा जाता है। मां सुरेश्वरी देवी प्राचीन सिद्ध पीठ मंदिर है। जिसके दर्शन मात्र से ही भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
बताते चलें कि शारदीय नवरात्र के प्रथम दिवस पर हरिद्वार के सुरेश्वरी देवी मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहा। हरिद्वार से 08 किमी दूर राजाजी टाइगर रिजर्व की हरिद्वार रेंज में घने जंगल के बीच सुरकुट पर्वत पर मां सुरेश्वरी देवी का मंदिर स्थित है। सालभर इस पौराणिक मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन नवरात्र के दिनों में मंदिर की छटा अलग ही देखने को मिलती है। शारदीय नवरात्र के प्रथम दिवस पर सुबह से ही मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ जुटी रही। घने जंगल के बीच इस मंदिर में मां दुर्गा और मां भगवती सिद्धपीठ के रूप में विराजमान है। स्कंदपुराण के केदारखंड में भी इस मंदिर का उल्लेख है। मां सुरेश्वरी देवी मंदिर की मान्यता है कि प्राचीन काल में जब चंद्रवंशी राजा रजी के पुत्रों ने देवलोक पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया था, तब भगवान विष्णु की प्रेरणा से देवताओं के राजा देवराज इंद्र ने इसी सुरकुट पर्वत पर मां भगवती की स्तुति की थी। स्तुति से प्रसन्न होकर मां भगवती ने देवराज इंद्र को दर्शन दिए और असुरों से मुक्ति दिलाई। उसके बाद इसी स्थान पर मां भगवती विराजमान हो गईं और आज तक भक्तों का कल्याण करती आ रही हैं। मां सुरेश्वरी देवी अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती है। राजाजी टाइगर रिजर्व के इस घने जंगल में गुलदार और हाथी जैसे कई खतरनाक जानवर भी रहते हैं, लेकिन कहा जाता है कि आज तक मंदिर जाने वाले किसी भी श्रद्धालु को इन जानवरों ने नुकसान नहीं पहुंचाया। गौरतलब है कि सुरेश्वरी देवी मंदिर के प्रति भक्तों की आस्था अटल है। इसी आस्था के बल पर आबादी से दूर घने जंगल के बीच से गुजरकर श्रद्धालु मां सुरेश्वरी देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आते हैं।

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