विलुप्त होने की कगार पर विश्व में मानव का सबसे पुराना साथी गौरया पक्षी… 

हरिद्वार। अंतर्राष्ट्रीय पक्षी वैज्ञानिक एवं दो दशकों से गौरया संरक्षण पर कार्यरत गुरुकुल कांगरी यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर व कुलसचिव डॉ. दिनेश चन्द्र भट्ट ने प्रेस को बताया कि उनकी टीम ने उत्तराखण्ड के विभिन्न स्थानों यथा गौरीकुंड, जोशीमठ, नैनीताल, अलमोड़ा, पौड़ी, गढ़वाल, कोटद्वार, हरिद्वार, रुड़की, देहरादून व आसपास के अनेक गांवों में गौरेया पक्षी का सर्वे किया, शोध मे पाया गया कि रुरल एरिया मे लगभग एक दसक से गौरेया कि संख्या यानी पापुलेशन मे कोई गिरावट नहीं हुई, किन्तु शहरी एरिया में गौरेया पापुलेशन में 40 से 60 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी।
हरिद्वार, देहरादून व रुड़की शहर मे विगत एक दशक से लगभग पांच हजार नेस्ट बॉक्स वितरित करने के कारण और नागरिको में जागरूकता बढ़ाने के प्रयास स्वरुप करीब 72 प्रतिशत नेस्ट बॉक्स गौरेया द्वारा सेलेक्ट किये गए। नागरिकों से आकड़े एकत्रित कराए जाने पर ज्ञात हुआ कि इस दरमियान प्रत्येक नेस्ट से 03/04 चूजों में से एक या दो चूजें सफलतापूर्वक नेस्ट बॉक्स से बहार निकल आये। शहरोँ में बिल्ली, कौवा व मैना गौरेया के चूजों को खा जाती है। नेस्ट बॉक्स बितरित करने के कारण शहरों मे गौरेया की पापुलेशन धीरे-धीरे 05 से 10 प्रतिशत तक बाद गयी है। देहरादून शहर के कम आबादी  वाले एरिया में ज्यादा आबादी वाले एरिया कि तुलना में गौरेया की पापुलेशन अधिक पायी गयी, क्योंकि मनुष्य की कम आबादी वाले एरिया में किचेन गार्डन ओपन लैंड थी जिसमें गौरेया को अपने बच्चों को कीट पतंग खिलाने को मिल जाते हैं व रात्रि विश्राम हेतु झाड़ियाँ भी। यह शोध कार्य स्प्रिंगर पब्लिशर्स द्वारा प्रतिष्ठित विज्ञान शोध पत्रिका प्रोसीडिंग्स ऑफ इंडियन नेशनल साइंस अकादमी के 88वें वॉल्यूम में प्रकाशित हुआ है। टीम मेम्बेर्स में डॉ. विनय कुमार, डॉ. के.के. जोशी व आशीष कुमार समल्लित थे।
प्रोफेसर दिनेश भट्ट ने वताया कि विश्व गौरैया दिवस का लक्ष्य इनकी घटती आबादी के बारे में जागरूकता बढ़ाना और संरक्षण को प्रोत्साहित करना है। इसका उद्देश्य पक्षी की सुरक्षा के लिए संरक्षण प्रयासों को मजबूत और व्यापक बनाना है और हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गौरैया के महत्व की सार्वजनिक समझ को बढ़ाना है।

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