मकर संक्रांति पर सिद्धपीठ बाबा स्थान पर हुआ खिचड़ी भोज का आयोजन…
हरिद्वार। निरंजनी अखाड़े के स्वामी आलोक गिरी महाराज ने कहा कि यूँ ही नही खिचड़ी को राष्ट्रीय व्यंजन स्वीकार किया जाता है। खिचड़ी का अर्थ होता है, सबसे मिलकर बना यानि एकता या संगठन का भाव वाला व्यंजन है और मकरसंक्रांति के अवसर पर भारत के लगभग सभी घरों में खिचड़ी बनाने की परंपरा है। खिचड़ी का अर्थ होता है सबका घुल-मिल जाना या एक हो जाना।
बताते चलें कि मकर संक्रांति के अवसर पर सिद्धपीठ बाबा स्थान, राजा गार्डन, जगजीतपुर का पीठाधीश्वर नियुक्त होने के उपरांत बाबा आलोक गिरी महाराज के सम्मान में स्थानीय भक्तों एवं आरएसएस कार्यकर्ताओं की ओर से खिचड़ी भोज आयोजित किया गया। बड़ी संख्या में लोगों ने खिचड़ी प्रसाद ग्रहण किया और आलोक गिरी महाराज को शुभकामनाएं दी। इसी क्रम में पूर्वांचल उत्थान संस्था की ओर से महासचिव बी.एन. राय ने बुके भेंट कर स्वामी आलोक गिरी महाराज का स्वागत किया। इस मौके पर आलोक गिरी महाराज ने कहा कि स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए उन्होंने सिद्धपीठ बाबा स्थान की जिम्मेदारी संभाली है और स्थानीय लोगों के सहयोग से ही पुर्नविकसित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने का विशेष महत्व है। खिचड़ी में सब्जी-दाल-चावल-मसाले आदि भोजन के अलग-अलग अवयव/रूप एक होकर अनूठा स्वाद प्रकट करते हैं। ठीक वैसे ही हम अलग-अलग वेशभूशा, खान-पान, रंग-संस्कृति युक्त भारतीय भी एक दूसरे के साथ मिलकर सनातन खिचड़ी बन जाते हैं, एक होकर सिर्फ और सिर्फ सनातनी भारतीय कहलाते हैं। उन्होंने कहा कि विधि के लिए तो आप जैसे चाहें सबको मिलाकर जैसे चाहें पका दें, बनेगी खिचड़ी ही। जैसे विश्व मे एकमात्र भाषा संस्कृत है जिसके शब्दो को कहीं भी किसी भी क्रम में रख दें वाक्य का अर्थ नही बदलता ऐसे ही हमारी खिचड़ी भी है, जैसे चाहें पका लें, कोई भी चीज आगे पीछे हो जाये तो भी न नाम बदलेगा न गुण और न ही स्वाद में कमी आयेगी और एक खास बात बताऊं अगर इसे बिना तेल, घी के भी बनायेंगे तो भी स्वाद में कोई खास गिरावट नही आयेगी।
स्वामी आलोक गिरी महाराज ने कहा कि मकर संक्रांति पर। संक्रान्ति का अर्थ है सम्यक दिशा में क्रांति जो सामाजिक जीवन का उन्नयन करने वाली तथा मंगलकारी हो। मकर संक्रांति पर सूर्य नारायण दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करते हैं। हिन्दू समाज मे समस्त शुभ कार्यों का प्रारंभ सूर्य के उत्तरायण होने से प्रारम्भ होता है। सामान्य भाषा मे हम कहते हैं कि मकर संक्रांति के बाद से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। इसे नकारात्मकता से अधिक सकारात्मकता के प्रभाव के रूप में भी देखा जाता है। मकर संक्रांति का विशेष धार्मिक और पौराणिक महत्व भी है। आज के दिन तड़के सुबह स्नान करना उत्तम माना जाता है। तिल का विशेष महत्व है अतः स्नान के जल में भी तिल के दाने डाले जाते हैं। तिल के पकवान लड्डू आदि बनाये जाते हैं और तिल का ही प्रसाद चढ़ाया जाता है। आज ही के दिन भीष्म पितामह जी ने धरती पर देह त्याग कर महाप्रयाण किया था। वहीं सिद्धबलि हनुमान नर्मदेश्वर महादेव मंदिर में भी खिचड़ी प्रसाद वितरण किया गया। इस मौके पर स्वामी मधुरवन, रणबीर राणा (यमुनोत्री) ठाकुर मंगलराम चौहान, मनकामेश्वर गिरी, विशाल शर्मा, अंकुर बिष्ट, रोहित यादव, दर्शील, संतोष शर्मा, भावना शर्मा, गायत्री देवी, रीना तोमर, बीना उनियाल, दीपा त्यागी, मुक्ति चड्ढा, पं.विनय मिश्रा, आचार्य शिवनारायण शर्मा सहित अन्य भक्तजन मौजूद रहे।