शिक्षा का दयालबाग़ मॉडल जीवन की परिस्थितियों में सफल है -प्रोफेसर प्रेम सरन सत्संगी।

हरिद्वार / आगरा। (विकासवादी/पुनः-विकासवादी) चेतना (डीएससी) के दयालबाग़ (कला) विज्ञान (और इंजीनियरिंग) पर 5वां अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन और 46 वां (इंटर) नेशनल सिस्टम्स कॉन्फ्रेंस (एनएससी) जिस का विषय है, इवैल्यूएशन ऑफ होमो सेपियंस टू होमो स्प्रिच्युअल्स फॉर बेटर वर्डलीनेस’, प्रोफेसर डॉ. आनंद श्रीवास्तव, समन्वयक आयोजक डीएससी, कील विश्वविद्यालय, जर्मनी, प्रोफेसर डॉ. सरूप रानी माथुर, सह-अध्यक्ष (पश्चिम) डीएससी, एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी, यूएसए, प्रोफेसर डॉ. अपूर्वा नारायण, सह-आयोजक डीएससी, यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ओंटारियो और यूनिवर्सिटी ऑफ वाटरलू, कनाडा, और प्रोफेसर प्रेम कुमार कालरा, अध्यक्ष, सिस्टम्स सोसाइटी ऑफ इंडिया, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली के उद्घाटन के साथ प्रारंभ हुआ।

“सिविलाइजेशन एंड कल्चर द अडवेंट ऑफ कॉन्शसनेस” शीर्षक से अपने उद्घाटन भाषण में, प्रोफेसर प्रेम कुमार कालरा, निदेशक, दयालबाग़ एजुकेशनल इंस्टीट्यूट (डीईआई), आगरा, भारत ने नैतिकता, सामाजिक संवेदनाओं और मूल्यों पर विचारों के विकास का पता लगाया। चेतना के विविध पक्षों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि वे संस्कृति और सभ्यता में कैसे योगदान करते हैं। प्रो. कालरा ने 21वीं सदी के खतरों के बारे में चिंता व्यक्त की और बताया कि कैसे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा जीवन के प्रति कर्तव्यनिष्ठ दृष्टिकोण अपनाने में सक्षम बना सकती है। सत्र की अध्यक्षता एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी, यूएसए की प्रोफेसर डॉ. सरूप रानी माथुर ने की।
दयालबाग़ एजुकेशनल इंस्टीट्यूट (डी.ई.आई), आगरा, भारत की शिक्षा सलाहकार समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर प्रेम सरन सत्संगी साहब ने इस बात पर प्रकाश डाला कि शिक्षा का दयालबाग़ मॉडल वास्तविक जीवन की परिस्थितियों में सफल है, जो प्रकृति में जटिल हैं, न कि केवल शुद्ध धार्मिकता का मिश्रण। लेकिन आध्यात्मिकता हमारे धर्मार्थ कार्यों से जुड़ी हुई है, इसलिए यह सफल हो गया है और दुनिया भर में अब हमारे पास अकादमिक और साथ ही पेटेंट अर्जित करने वाले क्षेत्रों में मूल शोध के लिए काफी कवरेज और गुंजाइश है ताकि ये उद्योग हमारे स्नातकों को अधिक से अधिक रोज़गार दे सकें, भले ही वे लाभ के लिए काम करते हों। लाभ को अपनी मूल अनुसंधान क्षमता में सहायक बनाए रखने की भावना रखते हैं जो ‘अंतिम और सबसे कम के संदर्भ में है। प्रोफेसर प्रेम सरन सत्संगी साहब की विज़न टॉक उनकी ओर से डॉ. अर्श धीर द्वारा प्रस्तुत की गई, जिसका शीर्षक था “रोल ऑफ कम्युनिटीज़ इन अचिविंग सस्टेनेबल डेवलपमेंट : ए केस स्टडी” । सत्र की अध्यक्षता कील विश्वविद्यालय, जर्मनी के प्रोफेसर डॉ. आनंद श्रीवास्तव ने की। संत(सु)परमैन इवोल्यूशनरी स्कीम के छात्रों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा।

दूसरे सत्र में प्रोफेसर सुखदेव रॉय, डीईआई, भारत, प्रोफेसर वंदना शर्मा, पंजाब विश्वविद्यालय, भारत की अध्यक्षता में “कोन्शिऔसनेस एंड लिटरेरी सिस्टम्स” विषयों पर प्रस्तुतियाँ शामिल थीं| प्रोफेसर जीपी सत्संगी, डीईआई, भारत और डॉ. भूपिंदर सिंह, आईसीएआर, भारत ने “एग्रोइकोलॉजी -कम -प्रिसिजन फार्मिंग सिस्टम” की अध्यक्षता की ; “इंजीनियरिंग सिस्टम्स” की अध्यक्षता प्रोफेसर डीके चतुर्वेदी, डीईआई, भारत और प्रोफेसर राजीव कुमार उपाध्याय, एचसीएसटी, भारत ने की। शाम के सत्र में, यूके के एडिनबर्ग विश्वविद्यालय के डॉ. अल्फी गैथोर्न-हार्डी ने “व्हाट वुड एग्रीकल्चर लुक लाइक इफ डिज़ाइंड बाय एन ईकोलोजिस्ट? मोर गार्डन्स फ्युवर फ़ील्ड्स ’’ शीर्षक पर एक व्याख्यान दिया, इसकी अध्यक्षता डॉ. बानी दयाल धीर, दयालबाग़ एजुकेशनल इंस्टीट्यूट (डीईआई), आगरा, भारत ने की। डॉ. दयाल प्यारी श्रीवास्तव, दयालबाग़ एजुकेशनल इंस्टीट्यूट (डीईआई), आगरा, भारत ने “क्रिएटिविटी, कोन्शिऔसनेस कॉनसैनसिऔसनेस ” पर व्याख्यान दिया। डॉ. बानी दयाल धीर ने “ ओ बेंग्स ! फोंड्ली टर्न टू योर ट्रू होम!: ए ब्रीफ एनालिसिस ऑफ़ हुजूर साहबजी महाराज्स प्ले दीन ओ दुनिया ” विषय पर व्याख्यान दिया। दयालबाग़ एजुकेशनल इंस्टीट्यूट की श्रीमती प्रेम प्यारी दयाल ने “कर्माज़ एंड द नेस्सिसिटी ऑफ़ द संत सतगुरु ऑफ़ द टाइम टू अटेन सैल्वेशन’’ अर्थात् मुक्ति प्राप्त करने के लिए उपस्थित संत सतगुरु की आवश्यकता पर बात की। पश्चिमी ओंटारियो विश्वविद्यालय और वाटरलू विश्वविद्यालय, कनाडा के प्रोफेसर डॉ. अपूर्वा नारायण ने आमंत्रित वार्त्ता की अध्यक्षता की।

तत्पश्चात शाम को, डॉ. क्रिस्टीन मान, लेखिका, थियोलॉग, मनोवैज्ञानिक, म्यूनिख, जर्मनी द्वारा “क्वांटम फिज़िक्स एंड द डेवलपमेंट ऑफ़ कोन्शिऔसनेस ” पर मुख्य व्याख्यान दिया गया, जिसकी अध्यक्षता कील विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. वोल्फगैंग जे. डशल ने की। जर्मनी. प्रोफेसर डॉ. एनेट विल्के, वेस्टफैलिस विल्हेल्म्स-यूनिवर्सिटेट मुंस्टर, जर्मनी ने प्रोफेसर डॉ. अन्नामार्गरेटा होरात्शेक, कील विश्वविद्यालय, जर्मनी की अध्यक्षता में “आर्ट, साइंसेज, एंड द इंजीनियरिंग ऑफ़ स्पिरिचुअल एवोल्यूशन : थ्री इंडियन नारेटिव्स ऑन द आर्ट ऑफ़ सेल्फ कल्टीवेशन” विषय पर अपना संबोधन दिया। प्रोफेसर डॉ. एंड्रियास मुलर, कील विश्वविद्यालय, जर्मनी ने “द स्प्रिचुअलिटी ऑफ़ द क्रिश्चियन डेजर्ट एस ए बेसिस फॉर देयेर रिलेशनशिप टू द एनवायरनमेंट ” विषय पर अपना भाषण दिया, जिसकी अध्यक्षता दयालबाग़ एजुकेशनल इंस्टीट्यूट (डीईआई, आगरा) के प्रोफेसर डॉ. सी. पटवर्धन ने की।
दिन का अंतिम सत्र योगदान पत्रों और पोस्टरों (डीएससी) के साथ संपन्न हुआ, जिसकी अध्यक्षता प्रोफेसर सोना आहूजा, दयालबाग़ एजुकेशनल इंस्टीट्यूट (डीईआई), आगरा, भारत ने की।
प्रत्येक सत्र में चेतना के विभिन्न पहलुओं पर आकर्षक और विचारोत्तेजक इंटरैक्टिव चर्चाएँ शामिल थीं। विशेषज्ञों और प्रस्तुतकर्त्ताओं द्वारा साझा किये गए और खोजे गए दृष्टिकोणों ने दर्शकों को हमारे दैनिक जीवन में मौजूद निर्विवाद धारणाओं का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए प्रोत्साहित किया।

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