मन की अंतर यात्रा में सहाई है राम कथा -आचार्य रामानुज।

हरिद्वार / सुमित यशकल्याण।

हरिद्वार। रामकृष्ण मिशन द्वारा आयोजित रामकथा के पहले दिन आचार्य रामानुज ने कहा कि 26 सालो की मेरी इस साधना को 125 से ज्यादा वर्षो से चल रहे चिकित्सा सेवायज्ञ में, ज्ञानयज्ञ के रूप में आहुति देने का मुझे अवसर मिला। गौरतलब है कि रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम कनखल की स्थापना स्वामी विवेकानंद के शिष्य द्वारा 1901 में हुई थी और तब से सेवाश्रम द्वारा अहर्निश चिकित्सा सुविधाएं दी जा रही है।

कथा के प्रथम दिवस पर आचार्य रामानुज ने कहा कि कथा मन को पवित्र करती है। जब हम बाहर से भीतर की ओर देखने प्रारंभ करेंगे तब हमारे में आत्मविश्वास आएगा। उन्होंने कहा कि हमारे भीतर बहुत बड़ा वैभव है, जो व्यक्ति सन्यास लेता है जो साधुता को पा जाता है, वो उस वैभव उस आत्म विश्वास को प्राप्त कर चुका होता है।
आचार्य ने आगे रामकथा का महत्व बताते हुए कहा कि ग्रन्थ का महात्म्य पता हो तो हमारे विचारों में क्रांति आ सकती है। जरूरी नही के हमारे बोलने से बात बने, यह भी हो सकता है कि हमारा मौन भी बहुत कुछ कह जाए।

आज सरल भाषा ग्राम्य गिरा की रामचरितमानस हर हिन्दू के घर उपलब्ध है। जब हम इसे एकाग्र होकर सुनते, पढ़ते हैं तो चौपाइयां, मन्त्र मित्र बनकर सुख-दुःख के हर क्षण में आपको बल प्रदान करती हैं।

राम कथा के माध्यम से आचार्य रामानुज ने कहा कि संतो की सेवा करनी चाहिए, किंतु थोड़ी दूरी भी बनाकर रखनी चाहिए, क्योंकि वे बहुत सरल होते हैं, वे सहजता में प्रवाहित होते है और उस प्रवाह के किनारे रहने वाले हम लोगों का विश्वास डगमगा सकता है। संत की करनी को ज्यादा मत ग़ौर करे क्योंकि उनको समझने की परिपक्वता हमारे अंदर नही है।

आसपास के क्षेत्रों से आए श्रोताओं को आचार्य रामानुज ने संकेत किया कि वे रामकथा से सत्य, करुणा और विश्वास को लेकर जाएं।
उन्होंने कहा कि जब तक भीतर का विश्वास मजबूत नही होगा तब तक हम भगवान को नही पहचान पाएंगे। गुरुशरण और गुरुकृपा से ही सब सम्भव हो पाता है, गुरु की कृपा से ही सम्मान मिलता है।
रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम के सचिव स्वामी विश्वेशानंद, स्वामी उमेश्वरानंद, स्वामी अनाद्यानंद, स्वामी त्यागिवरानंद, अन्य साधु एवं ब्रह्मचारी गण मौजूद रहे।

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