पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय के तत्वावधान में दो दिवसीय सम्मेलन ‘सौमित्रेयनिदानम्’ का शुभारंभ…

हरिद्वार। पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय के तत्वावधान तथा पतंजलि विश्वविद्यालय के सभागार में दो दिवसीय सम्मेलन ‘सौमित्रेयनिदानम्’ का उद्घाटन स्वामी रामदेव महाराज, आचार्य बालकृष्ण महाराज, मुख्य अतिथि एवं केंद्रीय आयुर्वेदिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) रबिन्द्रनारायण आचार्य, केन्द्रीय विश्वविद्यालय नई दिल्ली के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी, भारतीय चिकित्सा पद्धति के लिए राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष वैद्य जयंत यशवंत देवपुजारी, आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के सचिव वैद्य राजेश कोटेचा एवं आयुर्वेद के मूर्धन्य विद्वानों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन कर किया। इस अवसर पर आचार्य बालकृष्ण के नेतृत्व में रचित कालजयी रचना ‘सौमित्रेयनिदानम्’ के साथ-साथ ‘सौमित्रेयनिदानम्’ रोगावली तथा सम्मेलन की स्मारिका का भी विमोचन किया गया।
ग्रन्थ का विमोचन करते हुए स्वामी रामदेव ने कहा कि आचार्य बालकृष्ण के नेतृत्व में निष्पन्न ‘सौमित्रेयनिदानम्’ एक मौलिक, कालजयी और अप्रतिम रचना है। उन्होंने कहा कि अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता का भाव और उनके ज्ञान, प्रज्ञान, विज्ञान के अनुरूप नव अनुसंधानों का नवोन्मेष का समन्वय संश्लेषण करते हुए इस नवयुग में नवायुगाचार के अनुरूप नए रोग, नए विकार, नई व्याधियाँ जो संसार में पनप रही हैं, उनका स्वरूप, लक्षण व निदान सचित्र प्रस्तुत करना एक चूनौतिपूर्ण कार्य था। अभी तक हमारी ऋषि परम्परा में लगभग 234 रोगों का वर्णन प्राप्त था, हमारे ऋषियों के बोध के साथ नवबोध का समन्वय करके लगभग 500 रोगों का सचित्र स्वरूप, लक्षण व निदान अद्वितीय कार्य है।
कार्यक्रम में आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि यद्यपि प्राचीन शास्त्रों में दोषों के आधार पर अनेक रोगों का वर्णन है परन्तु वर्तमान समय में उनमें से लगभग 234 रोग ही उपलब्ध हैं। अर्वाचीन युग में दृश्यमान आयुर्वेद में वर्णित व्याधियों के अतिरिक्त प्राचीन ग्रन्थों में पृथक्-पृथक् रूप से जिनका विशेष वर्णन जो अभी तक अनुपलब्ध था, उन सबको प्रामाणिकता के साथ एक स्थान पर नूतन रूप में स्थापित करने का प्रयास ही ‘सौमित्रेयनिदानम्’ है। आचार्य ने बताया कि ग्रन्थ को शरीर संरचना के आधार पर 14 खण्डों में विभाजित करते हुए 6821 श्लोकों में 471 मुख्य व्याधियों सहित लगभग 500 व्याधियों का सचित्र वर्णन किया गया है। साथ ही ग्रन्थ के माध्यम से आयुर्वेद की परम्परा में प्रथम बार 2500 से भी अधिक चिकित्सकीय अवस्थाओं (Clinical Conditions) का वर्णन किया गया है। उन्होंने बताया कि ‘सौमित्रेयनिदानम्’ के अंग्रेजी रूपान्तरण में श्लोक, श्लोकों की फोनेटिक्स और अंग्रेजी में विषय प्रस्तुति की गई है। साथ ही सौमित्रेयनिदानम् का अंग्रेजी भाषा में रूपान्तरण की कराया गया है।
इस अवसर पर प्रो. (डॉ.) रबिन्द्रनारायण ने कहा कि यदि हम आयुर्वेद के इतिहास में जाएं तो देखेंगे कि आयुर्वेद के शास्त्रों पर विशेष चर्चा, उनकी समीक्षा तथा समय-समय पर युग और राष्ट्र की आवश्यकताओं के अनुसार उनका नवीनीकरण नहीं किया जाता। आयुर्वेद विज्ञान को काल व समय के आधार पर प्रगतिशील बनाना होगा। औषधीय पौधों तथा रोगों की संख्या, लक्षण व उनके निदान का वर्णन वेदों, संहिताओं, पुराणों में निघण्टुओं में अब दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। पिछले कुछ दशकों में इस कार्य में आचार्य बालकृष्ण की विशेष भूमिका रही है।
कार्यक्रम में प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी ने कहा कि आयुर्वेद केवल चिकित्सा पद्धति नहीं अपितु वेद, उपनिषद्, दर्शन, शास्त्र भी है। संस्कृत भाषा को बल प्रदान करते हुए उन्होंने कहा कि संस्कृत भूमि है, शास्त्र बीज रूप में उसमें उत्पन्न हुआ है। इस कृषि को आचार्य ने अपने अनुभव रूपी जल से सिंचित किया है। इससे एक नए निदान शास्त्र का अंकुर उत्पन्न हुआ है, इसको वृक्ष बनाना, फल प्राप्त करना, यह सब हमारा कार्य एवं कर्तव्य है।
सम्मेलन के प्रथम दिन प्रथम सत्र में ए.आई.आई.एम.एस. (एम्स), नई दिल्ली के प्रोफेसर तथा रोग निदान विभाग के विभागाध्यक्ष, शैक्षणिक संकायाध्यक्ष, डॉ. आनंद ने ‘हृदय रोग की अवधारणा और समकालीन अवलोकन’ विषय पर प्रकाश डाला। पारूल आयुर्वेद संस्थान, वडोदरा के प्रोफेसर डॉ. सचिन देवा ने ‘सौमित्रेयनिदानम् में शीतपित्त की खोजः व्यापक समीक्षा और विस्तृत जानकारी’ विषय पर विस्तार से चर्चा की। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जम्मू के सहायक प्रो. डॉ. रविकांत तिवारी ने आयुर्वेद एवं योग के मतानुसार मानसिक रोग के कारण एवं निवारण पर व्याख्यान दिया।
पंडित खुशीलाल शर्मा शाशकीय (स्वायत्त) आयुर्वेद संस्थान, भोपाल की रोग निदान विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रीता सिंह ने रुमेटिक गठिया (आमवात) ऑस्टियोआर्थराइटिस (संधिवात) और एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (वंशकशेरु) के लिए नैदानिक दृष्टिकोण पर विषद् चर्चा की। ऑस्ट्रेलियाई पाठड्ढक्रम, मूल्यांकन और रिपोर्टिंग प्राधिकरण (ACARA), आयुर्वेद विद्यालय, अमृतपुरी के अनुसंधान निदेशक प्रो. डॉ. राममनोहर पी. ने ‘अनुक्त व्याधियों के मूल्यांकन और नैदानिक रूपरेखा के लिए आयुर्वेदिक नवाचार’ विषय पर व्याख्यान दिया।
सम्मेलन के दूसरे सत्र में एस.ए.एम. कॉलेज ऑफ आयुर्वेदिक साइंसेज एंड हॉस्पिटल, भोपाल के प्राचार्य प्रो. डॉ. अखिलेश सिंह, रोग निदान एवं विकृति विज्ञान विभाग, ऋषिकुल परिसर, उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय, हरिद्वार के प्रोफेसर डॉ. संजय कुमार सिंह, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, श्री सदाशिव परिसर, पुरी, उड़ीसा के डीन-यौगिक साइंस एण्ड हॉलिस्टिक हैल्थ प्रेक्टिसिस, दिल्ली के निदेशक डॉ. बनमाली बिसवाल ने विविध विषयों पर शोध प्रस्तुत किए।
सम्मेलन में उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अरूण त्रिपाठी, क्रीड़ाकुल, जेपीएनवी निगड़ी, जोधपुर के वरिष्ठ आयुर्वेद सलाहकार डॉ. श्रीप्रसाद बावड़ेकर, टिकरी आयुर्वेद केन्द्र बैंगलुरू के प्रो. (डॉ.) जी.जी. गंगाधरन, आयुर्वेद कॉलेज तिरूपति से सेवानिवृत प्राचार्य डॉ. मुरलीकृष्णा, अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान नई दिल्ली के सह-प्राध्यापक डॉ. संदीप तिवारी, दत्तामेगी उच्च शिक्षा एवं शोध संस्थान नागपुर से सहायक प्राध्यापक वैद्य माधव आष्टिकर, पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय से डॉ. नेहा बरूआ, आई.एम.एस. बी.एच.यू. वाराणसी के सहायक प्राध्यापक डॉ. अनुराग पाण्डेय, बी.एच.यू., वाराणसी के सहायक-प्राध्यापक वैद्य सुशील दूबे आदि विद्वान उपस्थित रहे।
आचार्य बालकृष्ण ने प्रो. सत्यपाल तथा पतंजलि विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के प्रो. मनोहर लाल आर्य का विशेष रूप से ‘सौमित्रेयनिदानम्’ को श्लोकबद्ध करने हेतु धन्यवाद ज्ञापित किया साथ ही इस कालजयी रचना में किसी न किसी रूप में सहभागी व्यक्तियों का भी आभार व्यक्त किया।

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