पतंजलि विश्वविद्यालय में आयोजित “छत्रपति शिवाजी महाराज कथा’’ का आठवां दिन…
हरिद्वार। पतंजलि विश्वविद्यालय में आयोजित “छत्रपति शिवाजी महाराज कथा’’ के आठवें दिन स्वामी गोविन्द देव गिरि महाराज ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने किसी के भी प्रार्थना स्थल को नहीं तोड़़ा लेकिन जहां मंदिर को तोड़कर अन्य प्रार्थना स्थल बनाये गये, उनको तोड़कर वापस मंदिर बनाया और अपना संकल्प सिद्ध किया।
उन्होंने बताया कि ऐतिहासिक प्रमाण है कि शिवाजी महाराज ने तिरूवणामलई के दो देवालय की पुनर्स्थापना की। मूल बात यह है कि जब अनेक लोगों के अतःकरण में आंकाक्षाएँ जागृत होती हैं तो स्वतः ही हमारी आंकाक्षायें जागृत हो जाती हैं। यदि वे तीव्र होंगी तो हमारा तीव्र संवेग होगा और स्वतः ही होगा, जैसे परमार्थ से वेद उन्नति करता है, उसी प्रकार जब पूरे समाज का तीव्र संवेग हो जाता है तो इस वातावरण, इस अंधकार से हमें बाहर निकालने के लिए किसी को तो आना ही पड़ता है।
स्वामी ने बताया कि महापुरुष का जन्म कैसे होता है, संसार को नयी दिशा देने वाले महापुरुष कैसे आते हैं। महापुरुष सागर के तट पर एकत्र होने वाली फेन के समान होते हैं, जब सागर में लहरे उठती हैं तो वह तट से टकराती हैं, विलीन होती हैं और फिर दूसरी लहर आती है। इसी प्रकार से यह क्रम चलता रहता है। इस प्रकार से लहरों के परस्पर टकराने से तट पर फेन इकट्ठा हो जाती है उसी प्रकार अनेक लोगों के अंतःकरण में अनेक वर्षों तक, कभी-कभी पीढ़ियों तक जब ये भावनाएं उठती हैं तब महापुरुष जन्म लेते हैं।
कार्यक्रम में स्वामी रामदेव महाराज ने 05 आंदोलनों का जिक्र करते हुए कहा कि आजादी का आंदोलन तो पूरा हो गया, अब चिकित्सा की आजादी के आंदोलन की बारी है। पतंजलि वैलनेस, योेगग्राम, निरामयम् और पतंजलि योगपीठ की विश्वव्यापी आयुर्वेद की प्रतिष्ठा से महर्षि चरक, महर्षि सुश्रुत की प्रतिष्ठा देश ही नहीं पूरे विश्व में होगी। उन्होंने कहा कि अब कोई पैथी नहीं, सभी पैथियाँ आयुर्वेद की अनुचर होंगी, सबसे ऊपर आयुर्वेद होगा। दासत्व तो सौभाग्य से मिलता है, हमको परमात्मा का, गुरुजनों का दासत्व मिला यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है। विश्वगुरु तो भारत ही है, अन्य सभी देश भारत का अनुसरण करें।
इसके अतिरिक्त शिक्षा की आजादी का भी बड़ा आंदोलन है। ब्रिटिशों ने उल्टे-पुल्टे कानून बना दिए जिसका खामियाजा देश को उठाना पड़ रहा है। कुछ तो संशोधित हो गए, कुछ में संशोधन होना अभी शेष है। 1835 में मैकाले द्वारा बनाए गए इण्डियन एजूकेशन एक्ट को अब ध्वस्त करने की बारी है जो भारतीय शिक्षा बोर्ड, पतंजलि विश्वविद्यालय, पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय, पतंजलि गुरुकुलम्, आचार्यकुलम् के माध्यम से किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि स्वदेशी आंदोलन के माध्यम से आर्थिक आजादी का आंदोलन पतंजलि द्वारा वर्षों से चलाया जा रहा है। एक हजार लाख करोड़ से अधिक रुपया मात्र ब्रिटिशर्स लूटकर ले गए। इसके अतिरिक्त जो यवनों, पुर्तगालियों, फ्रांसिसियों, शक व हुणों ने लूटा वह अलग है। राजनैतिक आजादी के बाद भी यह आर्थिक लूट जारी है। हमें 100 प्रतिशत स्वदेशी का प्रयोग करके आर्थिक लूट से भी देश को मुक्ति दिलानी होगी।
और सबसे बड़ी आजादी वैचारिक व सांस्कृतिक आजादी है। कोई भी राष्ट्र बिना स्वाभिमान के आगे बढ़ ही नहीं सकता। सनातन व हिन्दू धर्म की प्रतिष्ठा या इसमें कोई दुराग्रह करे तो रामराज्य की प्रतिष्ठा से तो अब हमें कोई रोक ही नहीं सकता। राम हमारा चरित्र, स्वाभिमान, भगवान, पूर्वज व सब कुछ हैं। हम राम के हैं, राम हमारे हैं। एक तरफ हमारा देश का संविधान और दूसरी तरफ हमारा सनातन संविधान, वेद का विधान। यही है सांस्कृतिक आजादी।
उन्होंने कहा कि यह कथा मात्र नौ दिनोें का अनुष्ठान भर नहीं है, यह कथा इसलिए की जा रही है कि हमारी भाव-चेतना ऐसी हो कि मैं मात्र एक व्यक्ति नहीं, मैं भगवान् राम, भगवान् कृष्ण, भगवान् शिव, छत्रपति शिवाजी महाराज का साक्षात् विग्रह रूप हूँ और उनके सपनों को मूर्त्त रूप प्रदान करने के लिए अपने पूरे जीवन की आहूति देने के लिए तत्पर हूँ। जब हर एक माँ के भीतर माता सीता, माता सावित्री, माता मदालसा, माता जिजाऊ, माता अंजनी, माता यशोदा, माता सुमित्र, माता गुजरी देवी का हमारे भीतर महान चरित्र मूर्त्त रूप लेगा और हम अपनी उन महान माताओं के, अपने पूर्वज ऋषि-ऋषिकाओं के, अपने पूर्वज वीर-वीरागंनाओं के मूूर्त्त विग्रह होकर उनके प्रतिनिधि, प्रतिरूप, उनके सच्चे अधिकारी होकर एक-एक कदम आत्म निर्माण, चरित्र निर्माण, राष्ट्र निर्माण व नये युग के निर्माण के लिए आगे बढ़ायेंगे तो इससे धरती का अंधेरा छँट जाएगा और वेदों के उद्घोष के अनुरूप भारत का निर्माण होगा।
इस अवसर पर पतंजलि परिवार के वरिष्ठ पद्मसेन आर्य, आचार्यकुलम् की उपाध्यक्षा डॉ. ऋतम्भरा, पतंजलि विश्वविद्यालय के प्रति-कुलपति प्रो. महावीर अग्रवाल, आई.क्यू.ए.सी. सैल के अध्यक्ष प्रो. के.एन.एस. यादव, कुलानुशासक स्वामी आर्षदेव, सहायक कुलसचिव डॉ. निर्विकार, आचार्यकुलम् की प्राचार्या आराधना कौल, सहित सभी शिक्षण संस्थान यथा- पतंजलि गुरुकुलम्, आचार्यकुलम्, पतंजलि विश्वविद्यालय एवं पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज के प्राचार्यगण व विद्यार्थीगण, पतंजलि संन्यासाश्रम के संन्यासी भाई व साध्वी बहनें तथा पतंजलि योगपीठ से सम्बद्ध समस्त इकाइयों के इकाई प्रमुख, अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित रहे।