अयोध्या में भव्य राम मंदिर के बाद अब सीतामढी में बनने जा रही है माता सीता की विश्व की सबसे बड़ी प्रतिमा…
हरिद्वार। रामायण रिसर्च काउंसिल द्वारा जगत जननी माता सीता की जन्म स्थली बिहार के पौराणिक तीर्थ सीतामढ़ी में सीता माता की विश्व में सबसे ऊंची प्रतिमा स्थापित की जा रही है। लगभग 12 एकड़ भूमि में स्थापित की जाने वाली अष्टधातु की माता सीता की प्रतिमा के साथ इस पूरे क्षेत्र को शक्ति पीठ के रूप में विकसित किया जाएगा । जिसमें प्रतिमा के चारों ओर वृत्ताकार रुप में श्री भगवती सीता माता के जीवन दर्शन को दर्शाते हुए 108 प्रतिमाएं भी स्थापित की जाएगी।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री महंत रविंद्रपुरी जी महाराज, निरंजनी अखाड़ा, राष्ट्रीय महामंत्री श्री महंत हरि गिरि महाराज एवं जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर हिमालयन पीठाधीश्वर स्वामी वीरेंद्रानंद गिरि महाराज ने एक संयुक्त पत्रकार वार्ता में उपरोक्त जानकारी देते हुए बताया कि इस पुनीत कार्य हेतु भूमि का चयन कर लिया गया है तथा इसके समतलीकरण का कार्य प्रारंभ हो गया है।
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रवींद्र पुरी ने कहा कि परिषद इस पवित्र कार्य के लिए तन मन धन से पूरा सहयोग देगी तथा सभी अखाड़े इस पुनीत कार्य के लिए जनसमर्थन भी जुटाएगी। उन्होंने सभी धर्म प्रेमी जनों से हर संभव सहयोग देने की अपील भी की। जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक व अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री श्री महंत हरि गिरी महाराज ने कहा मां जगदंबा सीता माता संपूर्ण नारी समाज के सशक्तिकरण, धैर्य, साहस और कर्तव्यनिष्ठा का एक अनुपम व विलक्षण उदाहरण है। उनके जीवन दर्शन का अनुकरण कर केवल नारी जाति ही नहीं अपितु संपूर्ण समाज का हित होगा।
उन्होंने कहा कि इस स्थल को शक्ति स्थल के रूप में विकसित करने के लिए देश के सभी 51 शक्तिपीठों के साथ-साथ बाली, श्रीलंका, इंडोनेशिया, श्री लंका की अशोक वाटिका या ऐसे स्थल जहां-जहां सीता माता गई है, उन स्थानों से पवित्र जोत, मिट्टी व जल लाया जाएगा। इसके अतिरिक्त उत्तराखंड स्थित पौराणिक तीर्थ, सीतामढ़ी जहां माता सीता भूमि में समाई थी, केदारनाथ, बद्रीनाथ, काशी, रामेश्वरम, भगवान जगन्नाथ, बांकेबिहारी आदि प्रसिद्ध पौराणिक तीर्थों से भी ज्योति लाई जाएगी। उन्होंने कहा कि अखाड़ा परिषद तथा संपूर्ण संत समाज इस पवित्र पुनीत कार्य के लिए हर संभव सहयोग करेगा।
रामायण रिसर्च काउंसिल के संयोजक वरिष्ठ सदस्य महामंडलेश्वर श्री महंत वीरेंद्रानंद गिरि जूना अखाड़ा ने रिसर्च काउंसिल के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि माता सीता के प्राकट्य स्थल को शक्ति स्थल के रूप में विश्व भर में प्रतिष्ठित किए जाने के साथ-साथ संबंधित स्थल को मातृ शक्ति के रूप में वैश्विक प्रचार-प्रसार करना है। यहां पर देश का प्रथम सांस्कृतिक दूतावास का निर्माण भी किया जाएगा। उन्होंने कहा कि माता सीता के मंदिरों का वास्तु शिल्प श्री विद्या के अनुरूप होगा, जिसमें सभी देवता तथा रामायण के प्रमुख देवी-देवता अपने अद्भुत रूप में स्थापित होंगे। विश्व के पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक भवन का निर्माण किया जाएगा, जिसमें अन्य देशों से आने वाले पर्यटकों वह राजदूतों को उच्च स्तरीय आवाज सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। उन्होंने कहा कि माता सीता हमारी संस्कृति और इस ब्रह्मांड की समस्त नारी समाज के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। उनके प्राकट्य स्थल सीतामढ़ी से जब उनके संघर्ष, त्याग व आदर्शों का प्रचार-प्रसार होगा तो निसंदेह है विश्व में भारत की संस्कृति व दर्शन को नए आयाम प्राप्त होंगे। सनातनी मातृशक्ति के प्रचार-प्रसार के अतिरिक्त सीतामढ़ी में स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर भी उपलब्ध होंगे। क्षेत्र का बहुमुखी विकास होगा और विश्व मानचित्र पर सीतामढ़ी की एक विशिष्ट पहचान बनेगी। महामंडलेश्वर वीरेंद्रानंद गिरी महाराज ने बताया रिसर्च काउंसिल द्वारा श्री सीता विद्यापीठ, श्री सीता स्वयं सहायता समूह, श्री सीता रसोई का भी संचालन किया जाएगा। काउंसिल द्वारा अयोध्या में श्री राम मंदिर के लिए 500 वर्षों से किए जा रहे संघर्ष पर आधारित 1108 पृष्ठों का एक ग्रंथ भी लेखन कार्य जारी है जिसे हिंदी के साथ-साथ 10 अन्य अंतरराष्ट्रीय भाषाओं में प्रकाशित किया जाएगा और 21 से भी अधिक देशों में इसका विमोचन किया जाएगा। उन्होंने बताया कि आगामी अप्रैल 2023 में माता सीता के मंदिर निर्माण के लिए होने वाले भूमि पूजन यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की सहमति मिल चुकी है। भूमि पूजन के साथ ही मंदिर निर्माण का कार्य युद्ध स्तर पर प्रारंभ किया जाएगा ।
पत्रकार वार्ता के दौरान अखाड़े के राष्ट्रीय सचिव श्री महंत प्रेम गिरी सचिव श्री महंत महेश्वरी सहित अन्य संत भी उपस्थित रहे।