ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य बने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के पट्टाभिषेक पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक -रविंद्र पुरी महाराज।
हरिद्वार। बद्रीनाथ स्थित ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य पद पर 17 अक्टूबर को होने वाले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के पट्टाभिषेक पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह रोक लगाई है और सुनवाई के लिए 18 अक्टूबर की तारीख निर्धारित कर दी है।
निरंजनी अखाड़ा में पत्रकारों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश की जानकारी देते हुए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी महाराज ने बताया कि स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती की ओर से उनके अधिवक्ता संतोष कुमार और नरेंद्र सिंह यादव ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए 17 अक्टूबर को ज्योतिष पीठ में शंकराचार्य पद पर होने वाले पट्टा विषयक कार्यक्रम पर रोक लगाने की प्रेयर की थी। जस्टिस बीआर गवाई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए तत्काल प्रभाव से पट्टाभिषेक समारोह पर रोक लगा दी है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कॉपी दिखाते हुए श्रीमहंत रविंद्र पुरी ने कहा कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को फर्जी तरीके से शंकराचार्य चुना गया था और पट्टाभिषेक भी गलत तरीके से किया जा रहा था। उन्होंने कहा कि मठ गिरी नामा है और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती हैं इसलिए उनका मठ में कोई अधिकार नहीं है। शंकराचार्य पद के लिए वसीयत मान्य नहीं होती है। उन्होंने कहा कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने इस बारे में अखाड़े के किसी साधु-संत से कोई बात नहीं की, केवल उन्हीं लोगों को बुलाया जो उनके खास व्यक्ति हैं। उन्होंने कहा कि शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती का शरीर पूरा होने के दौरान ही स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को मंत्र पढ़कर फर्जी तरीके से शंकराचार्य बनाया जा रहा था। हमने इसका विरोध किया तो स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने तर्क दिया कि जब एक राजा का शरीर पूरा हो जाता है तो उसके मृत शरीर के सामने ही दूसरा राजा चुना जाता है। श्रीमहन्त रविंद्र पुरी ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद बताएं कि वह राजा बन रहे हैं या फिर सन्यासी। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का स्टे होने के बाद कार्यक्रम आयोजित करना और उसमें जाना अवमानना की श्रेणी में आता है। इसलिए इस कार्यक्रम में जाना किसी के लिए भी सही नहीं है, यह कोर्ट की अवमानना मानी जाएगी। यदि कोर्ट की अवमानना की जाती है तो कार्रवाई होगी।