उत्तराखंड बनाने और संवारने में नायिका ताई का योगदान हमेशा याद रहेगा -डॉ. आनंदमोहन रतूड़ी।
उत्तराखंड की राजनीति में 40 वर्षों तक सक्रिय रही सुशीला बलूनी के निधन से नए राज्य बनाने के आंदोलन करने वालों और नई पीढ़ी के लिए बहुत बड़ा झटका लगा है। 84 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उत्तराखंड की मांग को लेकर भूख हड़ताल की शुरुआत करके उन्होंने महिलाओं की आंदोलन में भूमिका बढ़ाई थी। उत्तराखंड आंदोलन के लिए भूख हड़ताल करने वाली पहली महिला आंदोलनकारी सुशीला बलूनी का नाम इतिहास में हमेशा बना रहेगा। सुशीला बलूनी के कारण ही पहाड़ की महिलाओं ने आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाई थी। आंदोलन की प्रमुख नेता होने के कारण उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया। इसके बावजूद उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन राज्य निर्माण में लगा दिया था। उत्तराखंड के गांवों में जाकर उन्होंने लोगों में अलख जगा दी थी। पहाड़ों में ही नहीं उत्तर प्रदेश और दिल्ली के पर्वतीय लोगों को भी उन्होंने आंदोलन से जोड़ दिया था।
राजनीतिक तौर पर उनका कांग्रेस और भाजपा से भी संबंध रहा। राज्य में जनता दल के गठन में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई। राजनीति में उन्हें स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा का समर्थक माना जाता था। हेमवती नंदन बहुगुणा के 1980 में पौड़ी गढ़वाल लोकसभा चुनाव लड़ने के दौरान उन्होंने राजनीति की शुरुआत की थी। राजनीति में रहते हुए भी ताई की राजनीतिक वाद विवाद से दूर रही। सभी राजनीतिक दलों में उनका एक विशेष मान-सम्मान था। एडवोकेट सुशीला बलूनी को सभी लोग आदर से ताई कहकर बुलाते थे। वह उत्तराखंड आंदोलनकारी सम्मान परिषद की अध्यक्ष और उत्तराखंड महिला आयोग की अध्यक्ष पद पर भी रहीं। सुशीला ताई इंद्रमणि बडोनी की अगुवाई में बनी उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति की केंद्रीय संयोजक मंडल की सदस्य थीं। जेल जाने के साथ ही उन्होंने आंदोलनों के दौरान कई बार लाठियां भी सहीं। लाठियों की मार से घायल हुई पर हिम्मत नहीं हारी। रामपुर तिराहा कांड के बाद आंदोलन की कमान संभालने के बाद तो उन्होंने सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया था।
सुशीला बलूनी ने देहरादून मेयर का चुनाव भी लड़ा लेकिन जीत नहीं पाईं। सुशीला ताई राज्य महिला आयोग ही अध्यक्ष रही। ताई ने आंदोलन के दौरान भी कभी हिम्मत नहीं हारी तो बीमारी के बावजूद उनकी जिंदादिली लोगों को हौंसला ही दिलाती रही। ताई सुशीला बलूनी के तीन पुत्र और एक बेटी है। बड़े बेटे विनय बलूनी वैज्ञानिक, दूसरे बेटे संजय अधिवक्ता, तीसरे बेटे विजय नौकरी में हैं। सुशीला बलूनी उत्तराखंड गठन के बाद राज्य के युवाओं को रोजगार मिले, इसके लिए लगातार सक्रिय रही। उत्तराखड से पलायन रोकने के लिए भी उन्होंने बार-बार कोशिश की। इसी तरह महिलाओं के सशक्तीकरण में उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई। ताई को विनम्र श्रद्धांजलि।