स्वराज सेवा दल ने उठाया ट्रांसफार्मर घोटाले का मामला, यूपीसीएल के एमडी पर लगाए गंभीर आरोप, जानिए मामला…
उत्तराखण्ड / सुमित यशकल्याण।
देहरादून। बिजली की दरों में बढ़ोतरी क्या हुई कि अब विभाग में हुए घपलें उजागर होने लगा है। लम्बे समय से बोतल में बंद पिटकुल का IMP ट्रांसफार्मर घपला अब समाने आने लगा है। पिट्कुल में इस घपले की जाँच तो हुयी लेकिन अभी तक इसकी जाँच रिपोर्ट में क्या रहा ये आज भी एक सवाल बना है।
करीब 100 करोड़ रुपये के इस घपले की जांच रिपोर्ट का आज भी शासन ने संज्ञान नही लिया। जबकि साल 2017 में कैग की रिपोर्ट में भी पिटकुल द्वारा खरीदे गए करीब 28 ट्रांसफार्मर की खरीद में नियमों को ताक पर रखने की बात सामने आई गयी थी।
जिसके बाद तत्कालीन सचिव ऊर्जा ने मामले को गम्भीर बताते हुए इसकी जांच के लिए एक कमेठी तैयार की थी लेकिन अभी तक जांच कमेठी की जांच में क्या मिला, इसपर अब सवाल उठने लगे हैं। वहीं मामले में शनिवार को आरटीआई कर्ता और स्वराज दल से जुड़े लोगों ने प्रेस क्लब में मामले पर सवाल खड़े किए हैं।
स्वराज दल के अध्यक्ष रमेश जोशी का कहना है कि करीब 100 करोड़ के इस घोटाले में जो लोग शामिल थे उनको ही पिछली सरकार ने ईनाम दिया है और उनको ही पिटकुल और यूपीसीएल के एमडी पद पर तैनाती दे दी लेकिन अब सरकार नही जागती है तो दल से जुड़े लोग एमडी अनिल यादव जो मामले में दोषी हैं के खिलाफ आंदोलन कर सड़कों पर उतरेगी ।
आपको बता दें कि वर्ष 2014 में पिटकुल ने आईएमपी कंपनी से करीब 28 ट्रांसफार्मर खरीदे थे, लेकिन खराब गुणवत्ता के चलते ट्रांसफार्मर सब स्टेशनों पर टिक नहीं सके। कम क्षमता के ट्रांसफार्मरों को हाई क्वालिटी के बताकर खरीदे गए, लेकिन वे क्षमता के अनुरूप नहीं टिक सके। खराबी के बाद ट्रांसफार्मरों की गुणवत्ता को लेकर पिटकुल प्रबंधन पर सवाल उठने लगे और देखते ही देखते बड़ा आंदोलन शुरू हो गया, जिसके बाद सरकार ने मामले का संज्ञान लेकर मामले की आईआईटी रूड़की से जांच के आदेश दिए। आईआईटी रूड़की ने पिटकुल प्रबंधन को पिछले साल रिपोर्ट सौंप दी थी साथ ही एक जाँच CPRI बेंगलोर से भी कराई थी… जांच रिपोर्ट में इस घोटाले में अभी कई और अभियंता भी निशाने पर हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पिटकुल अधिकारियों ने आपसी सांठ-गांठ करके महंगे दामों पर कम क्षमता वाले ट्रांसफार्मर खरीद डाले। लेकिन घटिया क्वालिटी के ट्रांसफार्मर अधिक दिन ना चल सके और एक के बाद एक जल कर खराब हो होते गए। बाद में मामले ने तूल पकड़ा तो पहले विभागीय जांच की गई, लेकिन इसका स्पष्ट नतीजा नहीं आया तो शासन ने आईआईटी रूड़की से जांच कराई, जिससे विभागीय अफसरों की पोल खुल गई और घोटाले की सारी सच्चाई सामने आ गई। इस मामले में फिर निगम प्रबंधन ने हीला-हवाली की तो शासन को कड़े निर्देश देने पड़े, जिसके बाद मामले ने गति पकड़ी। सचिव ऊर्जा राधिका झा की फटकार के बाद निगम प्रबंधन ने घोटाले में शामिल अन्य अभियंताओं को चार्जशीट जारी की है। इन सभी अभियंताओं को खराब गुणवत्ता के ट्रांसफार्मर खरीदने और इस्टालेशन में लापरवाही का आरोप है। सभी अधिकारियों को एक माह के अंदर जवाब रखने के निर्देश दिए गए हैं। जिसमे कुछ अधिकारियों को दोषी मानते हुये सस्पेंड किया गया था जो आज निगमों में बड़े पदों पर बैठे हैं चीफ इंजीनियर अनिल यादव और अजय अग्रवाल, अधीक्षण अभियंता राकेश कुमार व कार्तिकेय दूबे, अधिशासी अभियंता मुकेश बड़थ्वाल, सतीश कुमार, राजेश गुप्ता, एस.डी. शर्मा, मनोज बहुगुणा, शीशपाल सिंह समेत सहायक अभियंता राहुल अग्रवाल शामिल हैं।