साधना का महापर्व नवरात्रि -डॉ. पण्ड्या।

हरिद्वार / सुमित यशकल्याण।

हरिद्वार। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि भारतीय संस्कृति में चैत्र नवरात्रि को साधना का महापर्व कहा गया है। इसलिए इन दिनों विशेष साधना का प्रावधान है। नवरात्र के दिनों में गायत्री साधना से साधक में आध्यात्मिक उन्नति होती है तथा रामकथा के श्रवण, मनन एवं चिंतन से वैचारिक क्षमता बढ़ती है।
डॉ. पण्ड्या देसंविवि के मृत्युंजय सभागार में रामचरित मानस पर आधारित शिव-पार्वती संवाद विषय पर आयोजित सत्संग सभा को संबोधित कर रहे थे। कुलाधिपति डॉ. पण्ड्या ने कहा कि प्रभु श्रीराम में पूरी संस्कृति समाया है और श्रीराम एक आदर्श शिष्य भी रहे। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में गुरु शिष्य परंपरा के अंतर्गत गुरु अपने शिष्य को शिक्षा देता है। शिष्य को जिज्ञासु के भाव से अपने सद्गुरु से संवाद करनी चाहिए और यही सच्चे शिष्य की पहचान है। समर्पित व सच्चा शिष्य बनने से ही आराध्य देव या सद्गुरु की कृपा बरसती है। यह आत्म परिष्कार एवं आत्म चिंतन, मनन से ही संभव है। इसलिए शिष्य को सद्गुरु द्वारा सुझाये गये कार्यों-साधनाओं को निःस्वार्थ भाव से करना चाहिए। उन्होंने कहा कि गुरु बनना समर्पित शिष्य बनने की अपेक्षा आसान है। शिष्यत्व की यात्रा मुश्किल है।

अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख डॉ पण्ड्या ने रामचरित मानस एवं श्रीमद्भगवत गीता के विभिन्न दोहों, चौपाइयों एवं श्लोकों के माध्यम से विद्यार्थियों में शिष्यत्व की यात्रा पर विस्तार से चर्चा की।
इससे पूर्व संगीत के भाइयों ने प्राचीन भारतीय वाद्ययंत्रों की धुन पर ‘जगतवंदे माँ, शक्ति दो साधना दो…’ गीत से प्रतिभागियों को शिष्यत्व भाव पैदा करने की ओर प्रेरित किया। इस अवसर पर कुलपति शरद पारधी, प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या, कुलसचिव बलदाऊ देवांगन, समस्त विभागाध्यक्ष, छात्र-छात्राओं के अलावा शांतिकुंज व ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान के अंतेवासी कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

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