एसएमजेएन (पीजी) काॅलेज में देव भूमि विचार मंच तथा प्रज्ञा प्रवाह के संयुक्त तत्वाधान में विचारगोष्ठी हुई आयोजित…
हरिद्वार / सुमित यशकल्याण।
हरिद्वार। एसएमजेएन (पीजी) काॅलेज में आज गुरुवार को देव भूमि विचार मंच तथा प्रज्ञा प्रवाह के संयुक्त तत्वाधान में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें इतिहास लेखन तथा स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास के सम्बन्ध में युवाओं, जनमानस को जागरूक करने के सम्बन्ध में विभिन्न विचारकों तथा प्राध्यापकों ने अपने विचार प्रस्तुत किये।
विचार गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए आरएसएस के प्रान्त संयोजक भगवती प्रसाद राघव ने कहा कि देवनगरी हरिद्वार 1857 की क्रान्ति का गढ़ था, वर्ष 1852 में कुम्भ के अवसर पर यहीं तात्या तोंपे, पेशवा राव, रानी लक्ष्मीबाई एवं अन्य स्वतंत्रता सैनानियों ने स्वतंत्रता की प्राप्ति हेतु विचार विमर्श किया था तथा एक गुप्त कार्यक्रम पर सहमति बनी थी। इतिहास के पुर्नलेखन पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि अब तक के इतिहास लेखन में राष्ट्रवादी विचार का अभाव रहा। अब आवश्यकता इस बात की है कि नई परिस्थिति में इतिहास का पुर्नलेखन राष्ट्रवादी दृष्टिकोण से किया जाये और इसके लिए बौद्धिकों का सहयोग आवश्यक है। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि स्वतंत्रता आन्दोलन 1857 के सही इतिहास को राजनैतिक दुराग्रहवश जनता के बीच विकृत करके परोसा गया, जबकि वास्तविकता यह है कि यह भारतीय स्वतंत्रता का राष्ट्रवादी उभार था।
प्रो. दिनेश चन्द्र शास्त्री, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय ने अपने सम्बोधन में कहा कि इतिहास लेखन में भारतीय मूल संस्कृति को महत्व देना आज के युग की अपरिहार्यता है। उन्होंने कहा कि अभी तक का इतिहास या तो औपनिवेशिक दृष्टिकोण से लिखा गया अथवा राजनैतिक दृष्टिकोण से। अब आवश्यकता इस बात की है कि सही भारतीय इतिहास युवा वर्ग को उपलब्ध कराया जाये।
काॅलेज के प्राचार्य प्रो. सुनील कुमार बत्रा ने देव भूमि विचार मंच व प्रज्ञा प्रवाह संस्था के कार्य की सराहना करते हुए कहा कि इस संस्था के कार्य को महाविद्यालय स्तर पर प्रत्येक सम्भव सहायता प्रदान की जायेगी। उन्होंने कहा कि वास्तव में किसी भी युवा पीढ़ी को यदि सही इतिहास से वंचित कर दिया जाये तो आने वाली पीढ़ियों में गौरवबोध का विकास नहीं हो पाता।
हर्ष विद्या मन्दिर पी.जी. काॅलेज, रायसी, हरिद्वार के प्राचार्य डाॅ. राजेश पालीवाल ने कहा कि इतिहास लेखन में क्षेत्रीय शक्तियों जनजातीय समूहों तथा मूल निवासियों के योगदान को नकारना न केवल इतिहास अपितु राष्ट्र के साथ भी अन्याय है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि जनजातीय समूहों के राष्ट्रीय आन्दोलन में योगदान को इतिहास में सम्मिलित करना चाहिए।
राजकीय महाविद्यालय, डोईवाला की राजनीति विज्ञान विभाग की डाॅ. अंजली वर्मा ने कार्यक्रम का कार्यवृत प्रस्तुत करते हुए कहा कि इतिहास लेखन की सभी प्रवृत्तियों में राष्ट्रवादी लेखन को वरीयता देनी चाहिए।
विचार गोष्ठी में मुख्य रूप से हर्ष विद्या मंदिर कालेज रायसी के प्रबन्धन सचिव हर्ष कुमार दौलत, डाॅ. आलोक अग्रवाल प्राचार्य चिन्मय कालेज, डाॅ. अजीत राव, डाॅ. दीपिका भट्ट, डाॅ. संजय कुमार माहेश्वरी, विनय थपलियाल, डाॅ. लता शर्मा, श्रीमती रिंकल गोयल, डाॅ. विजय शर्मा, डाॅ. मनोज कुमार सोही, डाॅ. रेनू सिंह, श्रीमती रिचा मिनोचा, डाॅ. सुगन्धा वर्मा, मोहन चन्द्र पाण्डेय आदि शिक्षक उपस्थित रहे।