वनों का संरक्षण अर्थात वन्य जीवों के घरौंदे का संरक्षण -स्वामी चिदानन्द सरस्वती।
उत्तराखण्ड / ऋषिकेश। सोमवार को राष्ट्रीय वन्य जीव दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि किसी भी राष्ट्र की समृद्धि में वहां के प्राकृतिक संसाधनों के साथ जैव विविधत का भी बहुत बड़ा योगदान है। स्वच्छ जल और जलीय जीवों से युक्त सदानीरा नदियां, हरे-भरे जंगलों के साथ उसमें स्वछंद रूप से भ्रमण करते वन्य जीव यही तो असली सम्पत्ति है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि प्राणियों के प्रति सम्मान व सुरक्षा का एक संकल्प हम शाकाहारी बनकर भी ले सकते हैं। हमारी तो संस्कृति में हमारे आराध्य देवताओं यथा भगवान श्री कृष्ण, भगवान शंकर और अन्य देवी-देवताओं ने प्राणियों को आश्रय, सम्मान और सान्निध्य प्रदान किया है आज जरूरत है उसी संस्कृति को आत्मसात करने की।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि हमें पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित करने में सहयोग प्रदान करना चाहिये और उसके लिये पौधों का रोपण और प्राणियों का संरक्षण आवश्यक है। अगर हम विकास के लिये वृक्षों को काटते है तो उससे अधिक पौधे हमें दूसरे स्थानों पर लगाना चाहिये। वृक्ष हमें केवल ऑक्सीजन ही नहीं प्रदान करते बल्कि वह अनेक पशु – पक्षियों का घर भी है इसलिये पौधों का रोपण करे जिससे जंगली जीवों और पक्षियों का घर बना रह सके। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि किसी भी पारिस्थितिक तंत्र में पौधों व प्राणी समुदायों में घनिष्ठ अंतर्संबंध पाया जाता हैं। अतः जैव विविधता के संरक्षण हेतु जनभागीदारी अत्यंत आवश्यक है जिससे धरती पर प्राणियों के लिये एक बेहतर निवास बनाया जा सके।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने धरती से विलुप्त हो रहे दुर्लभ प्राणियों के विषय में चिंता व्यक्त करते हुये कहा कि दुर्लभ प्रजातियों के विलोपन के लिये प्राकृतिक तथा मानवीय दोनों ही कारण जिम्मेदार है किंतु वर्तमान समय में मानवीय गतिविधियाँ सबसे बड़ा कारण बनकर सामने आ रही है। वन्य जीवों के संरक्षण हेतु सतत् संधारणीय विकास को बढ़ावा दिया जाना चाहिये इससे वन्य जीव प्रजाति का अस्तित्व बचा रहेगा।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि लुप्तप्राय जीवों या पक्षियों की हत्या एवं उनके अवैध शिकार तथा कालाबाजारी पर नियंत्रण किया जाना चाहिये। उन्होने कहा कि प्राणियों का पालन-पोषण और संरक्षण करना श्रेष्ठ कार्य है परन्तु पशुओं के साथ क्रूरता का व्यवहार न करें। आईये आज संकल्प लें कि प्राणियों के साथ क्रूरता का व्यवहार नहीं करेंगे।
ज्ञात हो कि वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लगभग 8000 से अधिक प्रजातियाँ लुप्तप्राय हैं और 30,000 से अधिक प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं। यह भी अनुमान लगाया गया है कि लगभग एक लाख प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं।
भारत में सभी दर्ज प्रजातियों का 07-08 प्रतिशत हिस्सा है, जिसमें पौधों की 45,000 से अधिक प्रजातियाँ और प्राणियों की 91,000 प्रजातियाँ शामिल हैं। भारत दुनिया के सबसे जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है, जहाँ तीन जैव विविधता हॉटस्पॉट हैं- पश्चिमी घाट, पूर्वी हिमालय और इंडो-बर्मा हॉटस्पॉट। देश में 07 प्राकृतिक विश्व धरोहर स्थल, 11 बायोस्फीयर रिजर्व और 49 रामसर स्थल और नेशनल पार्क हैं परन्तु प्रजातियों के विलुप्त होने में मानव गतिविधियों के साथ-साथ शहरीकरण के कारण प्राणियों के निवास स्थान को नुकसान, प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवास से स्थानांतरित करना, वैश्विक प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन आदि शामिल है इसलिये हम सभी को वन्य जीव संरक्षण का संकल्प लेना होगा।