श्री-ज्योतिर्मठः में तोटकाचार्य जी के पट्टाभिषेक दिवस संपन्न
सुमित यशकल्याण
आज भगवत्पाद आद्य शंकराचार्य जी के शिष्य श्री-ज्योतिर्मठः के प्रथम आचार्य श्री तोटकाचार्य जी का पावन पट्टाभिषेक दिवस है।
आदि शंकराचार्य जी ने तोटकाचार्य के रूप में एक रत्न खोजा था। तोटकाचार्य जी को उन्होंने ज्योतिर्मठ के प्रथम शंकराचार्य के रुप में अभिषिक्त किया। ऐसा माना जाता है कि आदि शंकराचार्य की शृंगेरी में एक बालक से भेंट हुई। बालक का नाम गिरि था। शंकराचार्य जी ने उसे अपना शिष्य स्वीकार लिया।
यह गिरि बडा श्रमी था और अन्य शिष्यों की भाँति अपना पूरा समय ग्रन्थ पठन में नहीं लगाता था। उसका अधिकांश समय सद्गुरु शंकराचार्य जी की काया, वाचा, मनसा सेवा करने में ही व्यतीत होता था। इसी कारण अन्य शिष्य उसे शास्त्राभ्यास में बहुत कच्चा मानते थे। वह उनके लिए एक हँसी का पात्र बना रहता था।
एक दिन जब गिरि आदि शंकराचार्य जी के वस्त्र नदी में धो रहा था तब उसी समय आदि शंकराचार्य जी ने मठ में अद्वैत वेदान्त की कक्षा आरम्भ की परन्तु गिरि को वहाँ न देख आदि शंकराचार्य उसकी प्रतीक्षा करने लगे। तब एक शिष्य ने कहा कि आचार्य! गिरि को सिखाना तो किसी दीवार को सिखाने जितना निरर्थक है।
शंकराचार्य जी समझ गए कि अन्य शिष्यों का अहं व भ्रम दूर करने का यही सही समय है। आचार्य ने मन के द्वारा ही गिरि को शास्त्रों का समस्त ज्ञान दे दिया। वहाँ नदी तट पर गिरि को ज्ञानप्राप्ति से आत्मिक आनन्द की अनुभूति हुई। वह उसी भाव में तल्लीन अवस्था में अपने श्रीगुरु के समक्ष चले आये। सद्गुरु की कृपा से उन्होंने तोटक छन्द से गुरु की स्तुति की।
पूरे समय गुरुसेवा में रत रहने वाले गिरि के मुख से तोटकाष्टकम् एवं शास्त्रों का ज्ञान सुन बाकी शिष्य हतप्रभ हुए। तोटक छन्द में सर्वोत्तम रचना करने के कारण आचार्य जी ने उनका नाम तोटकाचार्य रखा।
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ज्योतिष्पीठ के प्रथम आचार्य तोटकाचार्य जी महाराज का पट्टाभिषेक दिवसोत्सव संपन्न
जोशीमठ चमोली –
आज पौष शुक्ल पूर्णिमा तदनुसार दिनांक 28 जनवरी 2021 को उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठ के प्रथम आचार्य तोटकाचार्य जी महाराज का पट्टाभिषेक दिवसोत्सव सम्पन्न हुआ ।
विविध कार्यक्रम सम्पन्न हुए
ज्योतिर्मठ के आराध्य देव चन्द्रमौलीश्वर महादेव का गौ-दुग्ध से महाभिषेक किया गया, तोटकाचार्य जी महाराज का महाश्रृंगार किया गया, भविष्य केदार भगवान् की पूजा, ज्योतिरीश्वर महादेव की पूजा, कल्पवृक्ष की परिक्रमा, लक्ष्मी-नारायण भगवान् की पूजा, चतुःषष्ठी योगिनियों का वस्त्र समर्पण किया गया, भगवती राजराजेश्वरी त्रिपुरसुंदरी जी की महाआरती की गई ।