मकर संक्रांति पर खिचड़ी महाभोज का आयोजन -आलोक गिरी महाराज।
हरिद्वार / सुमित यशकल्याण।
हरिद्वार। कनखल जगजीतपुर फुटबॉल ग्राउंड के निकट स्थित श्री बालाजी धाम, श्रीसिद्धबलि हनुमान मंदिर एवं श्री नर्मदेश्वर महादेव मंदिर में श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी के महंत दिगंबर आलोक गिरी के सानिध्य में मकर संक्रांति पर्व के पावन अवसर पर खिचड़ी महाभोज का आयोजन किया जा रहा है। महंत आलोक गिरी ने बताया कि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना मकर-संक्रांति कहलाता है। संक्रांति के लगते ही सूर्य उत्तरायण हो जाता है। मान्यता है कि मकर-संक्रांति से सूर्य के उत्तरायण होने पर देवताओं का सूर्योदय होता है और दैत्यों का सूर्यास्त होने पर उनकी रात्रि प्रारंभ हो जाती है। उत्तरायण में दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं। महापर्व संक्रांति के एक रूप अनेक हैं।
आलोक गिरी महाराज ने कहा कि सूर्य की मकर-संक्रांति को महापर्व का दर्जा दिया गया है। उत्तर प्रदेश में मकर-संक्रांति के दिन खिचड़ी बनाकर खाने तथा खिचड़ी की सामग्रियों को दान देने की प्रथा होने से यह पर्व खिचड़ी के नाम से प्रसिद्ध हो गया है। उन्होंने कहा कि बिहार-झारखंड एवं मिथिलांचल में यह धारणा है कि मकर-संक्रांति से सूर्य का स्वरूप तिल-तिल बढ़ता है, अत: वहां इसे तिल संक्रांति कहा जाता है। यहां प्रतीक स्वरूप इस दिन तिल तथा तिल से बने पदार्थो का सेवन किया जाता है। आलोक गिरी महाराज ने कहा कि
मकर संक्रांति को विभिन्न जगहों पर अलग-अलग तरीके से मानाया जाता है। हरियाणा व पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। उतर प्रदेश व बिहार में इसे खिचड़ी कहा जाता है। उतर प्रदेश में इसे दान का पर्व भी कहा जाता है। उन्होंने कहा कि असम में इस दिन बिहू त्यौहार मनाया जाता है। दक्षिण भारत में पोंगल का पर्व भी सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर होता है। वहां इस दिन तिल, चावल, दाल की खिचड़ी बनाई जाती है। वहां यह पर्व चार दिन तक चलता है। नई फसल के अन्न से बने भोज्य पदार्थ भगवान को अर्पण करके किसान अच्छे कृषि-उत्पादन हेतु अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। संक्रांति एक विशेष त्यौहार के रूप में देश के विभिन्न अंचलों में विविध प्रकार से मनाई जाती है। आलोक गिरी महाराज ने कहा कि मकर संक्रांति पर स्नान का भी खास महत्व है। कहा जाता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान करने पर सभी कष्टों का निवारण हो जाता है। इसीलिए इस दिन दान, तप, जप का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन दिया गया दान विशेष फल देने वाला होता है। मकर संक्रांति का ऐतिहासिक महत्व बताते हुए आलोक गिरी महाराज ने कहा कि माना जाता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उनके घर जाते हैं, चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। मकर-संक्रांति से प्रकृति भी करवट बदलती है। इस दिन लोग पतंग भी उड़ाते हैं। उन्मुक्त आकाश में उड़ती पतंगें देखकर स्वतंत्रता का अहसास होता है। आलोक गिरी महाराज ने कहा कि कोरोना महामारी के दृष्टिगत कार्यक्रम को संक्षिप्त किया गया है। साथ ही आने वाले श्रद्धालुओं से निवेदन भी किया गया है कि वह कार्यक्रम में मास्क, सैनिटाइजर एवं 02 गज की दूरी के नियमों का पालन करें।