देवभूमि में दिखी देश के विभिन्न राज्यों की संस्कृति का मिलन…
हरिद्वार। हरिद्वार गुज्जू परिवार द्वारा श्याम सुंदर भवन में चल रहे गरबा महोत्सव में मंगलवार की रात गुजरात और उसके पड़ोसी राज्य राजस्थान की जनजातियों की वेशभूषा की थीम पर गरबा करती दिखी। राजस्थान की मारवाड़ी, भील और मीणा, गरासिया जनजाति की वेशभूषा पर आधारित राजस्थानी राजपूतना में कुछ बहने सजधज कर आई थी वही मेहर, आहिर, रबारी जनजाति द्वारा पहने जाने वाले केडयू, आगळी की वेशभूषा में गुजराती महिलाए। यह सभी छोटे गोलाकार या बादाम के आकार के शीशों के उपयोग की विशेषता वाली, अहीर कढ़ाई, जिसका कच्छ के अहीर सदियों से अभ्यास करते आ रहे हैं, गुजरात में कच्छ परंपरा की भरत या “भरने” वाली कढ़ाई की बड़ी छतरी के अंतर्गत आती है। स्थानीय वनस्पतियों से प्रेरित या तो स्वतंत्र बूटा या सरल ज्यामितीय आकृतियों और गोलाकार आकृतियों (पांच विभिन्न प्रकार की) के संयोजन का उपयोग पशु और आलंकारिक रूपांकनों को बनाने के लिए किया जाता है। इनमें हाथी, बिच्छू, तोते और मोर और कृष्ण के चित्रण, जिन्हें कानूडो के रूप में जाना जाता है और दूध वाली या माहियारी, सभी को रेशम या सूती धागों का उपयोग करके रंगे कपड़े पर कढ़ाई की जाती है ।
रचना दवे का कहना है कि भारत विविधताओं से भरा देश है हमारी भाषा, वेशभूषा, भोजन भले ही अलग अलग हो किन्तु हमारी संस्कृति हमें वसुधैव कुटुंबकम की भावना सिखाती है। संस्कृति का मिलन ही उत्सवों का उदेश्य रहा हैं। इन दिनों जहां उत्सव केवल आनन्दोत्सव का बनकर रह गया है तब युवाओं को, सभ्यता, परंपरा, और रीति-रिवाज के साथ सभी त्यौहार मनाने का संस्कार देते है हरिद्वार गुजु परिवार के सदस्य।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री के आवाहन मोटे श्री धान्य पर आधारित २०२३ में millets २०२३ आयोजन के अंतर्गत गुजराती गरबा के साथ गढ़वाली भोजन का आयोजन हमने किया था। जिसमे गुजरात और उत्तराखंड की संस्कृति का आयोजन भी किया था।
पंचमी नवरात्रि पर आयोजित इस वेशभूषा आयोजन में मानसी पाठक, डिम्पल, पद्मा देसाई, सोनल पटेल, अरुणा बेन गढवी, रमा नागेरा, रचना दवे, निशि, जयश्री दासानी आदि महिलाओं ने जनजाति वेशभूषा में भाग लिया।