एसएमजेएन (पीजी) काॅलेज में आयोजित सेमिनार के तकनीकी सत्र में पढ़े गए उच्च गुणवत्ता के शोध पत्र…
हरिद्वार। एसएमजेएन (पीजी) काॅलेज में उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं शोध केंद्र के तत्वाधान में आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार के तकनीकी सत्र में विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों तथा शोध संस्थानों से आए हुए प्रतिभागियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। तकनीकी सत्र में पर्यावरणविद् प्रो.बी.डी. जोशी ने उत्तराखंड की पारंपरिक ज्ञान संपदा के संदर्भ में जैव विविधता के संरक्षण की अनेकों तकनीकों के समझाया।
प्रो.बी. डी. जोशी ने बताया कि लगातार हो रहे शहरीकरण तथा प्राकृतिक आवासों के विनाश के चलते कई प्रजातियां विलुप्त भी हो चुकी हैं। आईआईएमटी यूनिवर्सिटी मेरठ से आए डॉ.पंकज सैनी ने वन्य जीव प्रबंध को जैव विविधता के संरक्षण हेतु एक आवश्यक कदम बताया। डीएवी पीजी कॉलेज देहरादून से आए डॉ.पुष्पेंद्र कुमार शर्मा ने “लेडी बर्ड बीटल” पर किए गए अपने शोध को प्रस्तुत किया। पतंजलि विश्वविद्यालय से प्रतिभाग करते हुए डॉ.निवेदिता शर्मा ने “होमा थेरेपी” तथा उसके प्रभाव पर किए गए शोध को प्रस्तुत किया। चमन लाल महाविद्यालय, लंढौरा की डॉ.रिचा ने जैव विविधता संरक्षण हेतु “अजैविक घटकों “ के संरक्षण की बात कही।
इस अवसर पर मदरहुड विश्वविद्यालय के डॉ.सौरभ कोहली ने अपने यूरोप के अनुभव को साझा करते हुए भारत में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की जीव प्रजातियों के संरक्षण की जाकारी दी। देव संस्कृति विश्वविद्यालय से प्रतिभाग करते हुए डॉ.अरुणेश पराशर तथा डॉ.मोहित कुमार ने पर्यावरण संरक्षण को जैव विविधता के लिए अहम बताया। इस अवसर पर डॉ.प्रवीण कुमार डोभाल, डॉ.ज्योति शर्मा, डॉ.स्वाति शुक्ला, पूजा आदि ने भी अपने-अपने शोध पत्रों को प्रस्तुत किया। सेमिनार के समापन सत्र में पोस्टर प्रतियोगिता में भव्या भगत तथा साक्षी गुप्ता को प्रथम पुरस्कार, गौरव बंसल तथा अपराजिता को द्वितीय पुरस्कार तथा दीपांशु नेगी को तृतीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। डॉ.प्रवीण कुमार तथा पूजा को मौखिक शोध पत्र की प्रस्तुति के लिए सम्मानित किया गया।
सेमिनार के समापन सत्र में कालेज के प्राचार्य डॉ.सुनील कुमार बत्रा ने जैव विविधता को बताते हुए कहा कि विकसित देशों को अविकसित एवं विकास शील देशों के प्राकृतिक सम्पदा की डकैती तथा वहां की जैव विविधता के साथ छेड़छाड़ को बन्द करना ही होगा नहीं तो इसके दुष्परिणामों से वे भी अछूते नहीं रहेगें। इसका उदाहरण न्यूयार्क की अति वृष्टि एवं वहाँ के जलभराव से सीख लेना ही उचित होगा। सैमिनार के सकुशल एवं प्रभावी समापन के लिए आयोजक सचिव डॉ.विजय शर्मा एवं डॉ.संजय माहेश्वरी, कन्वीनर, रूचिका सक्सेना एवं कविता छावडा़ को भी सम्मानित किया।