रामायण की चौपाई में है परमहंस की व्याख्या -आचार्य रामानुज।
हरिद्वार / सुमित यशकल्याण।
हरिद्वार। रामकृष्ण मिशन द्वारा आयोजित रामकथा के दूसरे दिन अचार्य रामानुज जी ने रामायण की चौपाई…
तापस सम दम दया निधाना। परमारथ पथ परम् सुजाना।।
भरतु हंस राबिबन्स तड़ागा। जनमि कीन्ह गुण दोष बिभागा।।
से उद्धृत परमहंस की व्याख्या की।
रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम द्वारा वही के साधु सन्यासियों द्वारा रामकृष्ण परमहंस देव की 188 वी जयंती पर आयोजित श्री रामकथा में आचार्य रामानुज जी ने परमहंस विषय पर अद्भुत उद्बोधन दिया। युवाओं को संबोधित करते हुए जीवन के अनेक पहलुओं को व्यक्तित्व विकास से जोड़कर कहा कि युवानी में यदि हमारे चरित्र में हमारे स्वप्न मुस्कुराए तो समझना युवानी सही रास्ते पर है। उन्होंने कहा कि आदर्श तक पहुंचने के लिए हमे चरित्र पर काम करना होगा, हमारे जो आदर्श हैं उनके जैसा बनना हो तो उनके जैसा चरित्र अपनाना पड़ता है। हमारे भीतर बैठा परमात्मा हमारी आंखों से देखता है आवश्यक यह है कि हम उन्हें क्या दिखा रहे है यह दृष्टि परमहंसों की होती है।
आचार्य रामानुज ने आगे कहा कि रामचरितमानस के सात कांड सात सोपान हैं, कथा सुनना ही प्रयाप्त नहीं कथा को जीना भी होता है इन्ही सात सीढ़ियों से परमहंस पद पाया जा सकता है।
परमहंस विषय को केंद्रित करते हुए कहा कि परमहंस होना अर्थात समदर्शी दृष्टि को पा लेना, परमहंस तत्त्व को महसूस करना हो तो पहले तप करना होगा पहला सूत्र है तपस्या।
सारे नियमों को छोड़कर किसी के हित के लिए कुछ करना भी एक प्रकार की तपस्या है, मन-वचन-कर्म को संस्कार के साथ एवं अपने आप के साथ जोड़कर रखना तप है। हमारी वाणी को अपने संकल्पों को पूरा करने के लिए मुखरित करना भी तप है।
आगे कथा में कहा कि साधु किसी के दोष नही देखता, वह अपनी गुरूपरम्परा, साधना से आश्वस्त होता है, थोड़ासा मिल जाने पर यदि अहंकार का अंकुरित हो तो परम् का मार्ग नही मिलता। अपने व्यक्तित्व को निखारना चाहते है तो मन-वचन-कर्म से एक मत होना नितांत आवश्यक है। संसार मे क्रांति करने वाला व्यक्ति बाह्याडम्बर से मुक्त होता है, भीतर को ऊपर उठाने की पृवत्ति को व्यक्तित्व विकास कहा जाता है, परम् के मार्ग को पकड़कर चलने वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व चमकता है।
आचार्य रामानुज जी ने आज की रामकथा शिवचरित्र का प्रसंग बहुत भावपूर्वक सुनाया। राम कथा स्थल रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम कनखल की स्थापना स्वामी विवेकानंद के शिष्य द्वारा 1901 में हुई थी और तब से सेवाश्रम द्वारा अहर्निश चिकित्सा सुविधाएं दी जा रही है। रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम के सचिव स्वामी विश्वेशानंद,
स्वामी उमेश्वरानंद, स्वामी अनाद्यानंद, स्वामी त्यागिवरानंद, अन्य साधु एवं ब्रह्मचारी, मुस्कान फाउंडेशन से नेहा मलिक गण मौजूद रहे।